
विगत वर्षों पर नजर डालें तो पता चलता है की कभी छद्म राष्ट्रवाद के नाम पर , कभी आतंकवाद से लड़ाई के नाम पर , कभी धर्मिक आस्थाओं की आड़ लेकर . कभी समाज में नैतिकता की रक्षा के बहाने से अभिव्यक्ति की आजादी को दबाने की निरंतर कोशिश होती रही है हम पर एक अघोषित सेंसरशिप थोपी जा रही है , बोलने की आजादी के क्षत्र को सीमित और संकुचित किया जा रहा है . ये बात तो तय है की अगर आपके विचार शासक वर्गो की मनमानी के विरुद्ध हैं राजनितिक विचारधाराओं ( कांग्रेस, बीजेपी , दक्षिणपंथी , वामपंथी नरमपंथी या मध्यममार्गी ) के विरुद्ध हैं तो फिर आपका विरोध होना निश्चित है , चाहें देश के टुकड़े हो जाएँ लेकिन कोई भी अपनी विचारधारा से आगे सोचने को तैयार नहीं होगा.. वो लोग अपहिजो जेसे बन जाते हैं और आपके विरोध में किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं ,
इसमें जो बात सबसे ज्यादा परेशां करने वाली होती है वो बात ये है की ऐसी कोशिश सरकार या पुलिस द्वारा नहीं हो रही है , बल्कि ये कोशिश साम्प्रदायिक , फासीवादी , भगवा देशभक्ति और कट्टरपंथियों के द्वारा कॉर्पोरेट जगत के सहयोग से हो रही है , इसके लिए हमेशा की तरह बिना दिमाग की भीड़ को भड़काया जाता है , और राज्य हमेशा की तरह एक आज्ञाकारी सेवक की भांति इन शक्तियों के सहयोग और समर्थन में खड़ा रहता है अब तो इसमें प्रसार भारती कानून और विज्ञापन के चक्कर में पत्रकार भी शामिल हो गए हैं !
वर्तमान में समाचार चेनल देशभक्ति , आतंकवाद ,विकास और नैतिकता के नए पुरोधा बन गए है जो उनके सुर में सुर नहीं मिलाएगा वो देशद्रोही , विकासविरोधी और अनैतिक माना जायेगा , हम में कितने लोग किसी खबर की सत्यता को जानने में रूचि रखते हैं कितने लोग हैं जो ऐसी खबरे सुनकर खुद को टटोलने का साहस रखते हैं , क्यं लोग बिना विचारे और सोचे समझे भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं अगर आप सचमुच देशभक्त हैं तो सत्य की खोज क्यों नहीं करते . जबकि हम कहीं न कहीं जानते हैं की सत्य गढा जा रहा है
हमें किसी की अभिव्यक्ति की आजादी को छिनने का अधिकार राज्य और इन तत्वों को नहीं देना चाहिए जो उन मुद्दों की तरफ जनता का ध्यान नहीं पहुँचने देना चाहते जो वर्षों से परेशानी और अखंडता का कारण बने हुए हैं ...
सिर्फ एक हिस्से का चमकना भारत का चमकना नहीं है पूर्वोत्तर जल रहा है , कश्मीर में चैन नहीं , विदर्भ में किसान मरते हैं , बुंदेलखंड में लोगो को पानी नहीं ... लेकिन हम कुछ देखना नहीं चाहते , अगर कोई बोलता है तो उसको भी इस अघोषित सेंसरशिप के टेल चुप करा दिया जाता है ... अरुंधती बोलती है तो भी आतंवादी कहलाती हैं , इरोम शर्मिला चानू नहीं बोलती , दस साल से भूख हड़ताल पर है तब भी आतंकवादी कहलाती है ........
क्या सिर्फ इंडिया ही है जिसमे लोकतंत्र हैं अभिव्यक्ति की आजादी है भारतियों का क्या ? उनका कोई अधिकार नहीं ? उनके लिए कोई संविधान नहीं ?
sochne ko vivash kartaa hai aapkaa aalekh....
ReplyDeleteआपका लेख पढा।
ReplyDeleteअच्छा है...
सच कहा है आपने......
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हर मोर्चे पर हनन हो रहा है......
पर जहां तक आपने बात की अरूंधति की.... इससे सहमत नहीं।
अरूंधति बोलती हैं पर कब? जब नक्सली शिकार होते हैं सुरक्षा बलों की गोलियों का तब उन्हें याद आता है मानवाधिकार....
लेकिन जब बेगुनाह लोग मारे जाते हैं नक्सलियों के हाथों तब वो चुप रहती हैं.....
दरअसल में लोग अपने फायदे के वक्त ही बोलने की कोशिश करते हैं बाकी समय तो वो खुद खामोश रहते हैं..... हर इंसान खुद अपनी अभिव्यक्ति की हत्या करता है.....
बहरहाल, पहली बार आपके ब्लाग में आया.... अच्छा लगा...
शुभकामनाएं आपको........
sahi vichardhara hai ... khub kaha hai aapne.. yahi hai vartamaan Bharat ka sach.. Erom nahi bolti phir bhi galat kahelati hai aur jo apni awaaz buland karta hai woh bhi galat thahera diya jata hai... achha laga padh kar... aur likhti rahiye.. shubhkamnaye..
ReplyDeleteआपके शब्दकोष के तीरों से प्रभावित हूँ लेकिन किसी भी विषय पर वेवाक बयां देने से पहले उन विषयो को अछि तरह जान ले संघ और नितिन गडकरी के ऊपर लिखे सब्दों से सहमत नहीं हूँ . राजनीती एक निरन्तर परिवर्तनशील विषय रहा है संघ की मानसिकता को समझने के लिए संघ के बरे में जानना जरूरी है सीधे सब्दों में दकियानूसी कहना उचित नहीं .नितिन जी कार्यों को देखना हो तो उनके राज्य मंत्रिपद के समय को देखें गूगल का समंदर आपके पास होगा. और रही बात संघीय व्यक्तियों की जिसे ऊँचे पद मिले पार्टी में तो मेरा ये कहना है की श्री अरुण जेटली कभी संघ के व्यक्ति नहीं रहे लेकिन पार्टी के उछ पदासीन हैं सुषमा जी और भी कई उदहारण हैं. अनुरोध है माननीय दीनदयाल जी की रचना एकात्म मनावबाद एकबार अवस्य पढ़े............
ReplyDeleteधन्यबाद
माधवेन्द्र
ktmadhaw@gmail.com
sawal apke jayaj hain..magar bura na maanein, najayaj tarko ke saath. darasal tathakathit buddhijivi type ke log hawayi adarsh aur naye jamanne ke gadhe hue fashionable shabdo jaise kshadm rastrawaad, bhagawaaadi aadi ke naaam par ekaaangi soch ko paalkar zahin banne ka dikhawa karte hain... vidarbh ke kisaano ko lekar apki samvedana bhare shabd kayal banaate hain... kash ap budhijivi aur khule dimag ki hone ka fashion chodkar humaari aane wali pidhi ke samksha madara rahe khatare aur maujooda pidhi ke dard ka ahsas karne ka maadda paida kar pati toh apko tasveer ke dono pahlu najar aate... kash aisa hota!!!!
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