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Tuesday, December 22, 2015

परिसीमा !!

जब भी मैं शाम को उस तरफ टहलने के लिए जाती  वह  गोरी अमेरिकन अपने कुत्तो के साथ अक्सर दिख जाया करती थी, अपनी छोटी सी बगिया को सवांरती बनाती हुई। उम्र लगभग ४५-५० के आस-पास ही होगी। एक दिन मैंने रुककर कर उसके गार्डन में लगे हुए तरह-तरह के पौधों के बारे में पूछ ही लिया। फिर तो ढेर सारी बाते हुई।  १५-२० मिनट मुलाकात में ही ऐसा लगा जैसे हम एक दूसरे को जाने कब से जानते है। बहुत अल्हड़ता थी उसमे।  वो एक चंचल नदी सी बह रही थी और मैं भी उसी बहाव के साथ उसका साथ दे रही थी। नाम-पते का आदान-प्रदान हुआ, और मैं आगे बढ़ गई। जब वापस लौटी वो मेरे लिए सुन्दर सा गुलदस्ता तैयार करके रखी थी।  मैं बहुत खुश हुई।
फिर तो अक्सर ही ऐसा होने लगा , मेरा शाम को टहलते समय  कुछ देर का उसका साथ मुझे ताजगी दे जाता।  मैं बाते करते समय उसके गोरे चेहरे पर खिलते हुए इंद्रधनुषी रंगो को देखती रह जाती।
सर्दिया शुरू हो गई थी , दिन छोटे होने लगे और हम अपने घर के आस-पास ही सिमट गए। लगभग एक साल के बाद फिर से उधर जाना हुआ।  वो बगिया वही थी, कुछ पौधे भी थे उदास उदास से, वो बात नही दिख रही थी। फिर २-३ बार और गई वो नही मिली। अब मुझे अजीब सा लगने लगा था।
बाजार में वापस आते हुए फिर एक दिन वहाँ  गई और डरते-डरते डोरबेल बजा दिया। वो निकली , उसने मुझे देखा , अपनी  बड़ी सी पलकों को २-३ बार झपकाया जैसे उसे यकीन ही न आ रहा हो कि हम उससे मिलने आये है। उसने  मुझे आत्मीयता से गले लगा लिया।  मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ था।  मुझे भी यकीन नही हो रहा था कि ऐसा कैसे हो गया? यह मेरे सामने जो है, यह वो तो नही है। उसकी आवाज़ में लड़खड़ाहट थी, जुबान-चेहरा-आवाज कोई भी एक दूसरे का  साथ नही दे रहा था।  मैंने पूछा, कैसे हुआ ये सब ? उसने घुटने पर ऑपरेशन के निशान दिखाए। बोली वो बीमार थी बहुत, उसने हमें बहुत मिस किया , जब भी वो हमारे अपार्टमेंट की तरफ से निकलती थी-वह हमें ढूढ़ने की कोशिश करती थी। आँखों में आंसू के साथ उसकी जीवंतता बरकरार थी। शायद  बहुत कुछ घट गया था इस बीच जो उसने हमें नही बताया।  हमने भी उसकी निजता का ख़याल रखते हुए सारी बाते जानने के लिए  ज्यादा जोर नही दिया।  उसके परिवार में कौन-कौन है हम नही जानते, कभी-कभार एक मित्र के अलावा हमने किसी को नही देखा वहा। वह खुश होकर अपनी बगिया से कुछ फल देने चाहे, हमें कोफ़ी के लिए आमंत्रित किया किन्तु उसकी हालत देखते हुए हमारा मन नही हुआ और हमने प्यार से मना कर दिया । हम उसे अपने अपनी कार में से  कुछ स्नेक्स देकर भरे मन से वापस आ गए और अभी तक दुबारा नही जा पाये।
बहुत कुछ करना चाहती थी उसके लिए लेकिन मैं एक प्रवासी चाहूँ भी तो अपनी सिमित आय और सिमित साधनो के साथ कर भी क्या सकती हूँ भला ?

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