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Sunday, July 31, 2011

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अघोषित सेंसरशिप !



विगत वर्षों पर नजर डालें तो पता चलता है की कभी छद्म राष्ट्रवाद के नाम पर , कभी आतंकवाद से लड़ाई के नाम पर , कभी धर्मिक आस्थाओं की आड़ लेकर . कभी समाज में नैतिकता की रक्षा के बहाने से अभिव्यक्ति की आजादी को दबाने की निरंतर कोशिश होती रही है हम पर एक अघोषित सेंसरशिप थोपी जा रही है , बोलने की आजादी के क्षत्र को सीमित और संकुचित किया जा रहा है . ये बात तो तय है की अगर आपके विचार शासक वर्गो की मनमानी के विरुद्ध हैं राजनितिक विचारधाराओं ( कांग्रेस, बीजेपी , दक्षिणपंथी , वामपंथी नरमपंथी या मध्यममार्गी ) के विरुद्ध हैं तो फिर आपका विरोध होना निश्चित है , चाहें देश के टुकड़े हो जाएँ लेकिन कोई भी अपनी विचारधारा से आगे सोचने को तैयार नहीं होगा.. वो लोग अपहिजो जेसे बन जाते हैं और आपके विरोध में किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं ,

इसमें जो बात सबसे ज्यादा परेशां करने वाली होती है वो बात ये है की ऐसी कोशिश सरकार या पुलिस द्वारा नहीं हो रही है , बल्कि ये कोशिश साम्प्रदायिक , फासीवादी , भगवा देशभक्ति और कट्टरपंथियों के द्वारा कॉर्पोरेट जगत के सहयोग से हो रही है , इसके लिए हमेशा की तरह बिना दिमाग की भीड़ को भड़काया जाता है , और राज्य हमेशा की तरह एक आज्ञाकारी सेवक की भांति इन शक्तियों के सहयोग और समर्थन में खड़ा रहता है अब तो इसमें प्रसार भारती कानून और विज्ञापन के चक्कर में पत्रकार भी शामिल हो गए हैं !

वर्तमान में समाचार चेनल देशभक्ति , आतंकवाद ,विकास और नैतिकता के नए पुरोधा बन गए है जो उनके सुर में सुर नहीं मिलाएगा वो देशद्रोही , विकासविरोधी और अनैतिक माना जायेगा , हम में कितने लोग किसी खबर की सत्यता को जानने में रूचि रखते हैं कितने लोग हैं जो ऐसी खबरे सुनकर खुद को टटोलने का साहस रखते हैं , क्यं लोग बिना विचारे और सोचे समझे भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं अगर आप सचमुच देशभक्त हैं तो सत्य की खोज क्यों नहीं करते . जबकि हम कहीं कहीं जानते हैं की सत्य गढा जा रहा है

हमें किसी की अभिव्यक्ति की आजादी को छिनने का अधिकार राज्य और इन तत्वों को नहीं देना चाहिए जो उन मुद्दों की तरफ जनता का ध्यान नहीं पहुँचने देना चाहते जो वर्षों से परेशानी और अखंडता का कारण बने हुए हैं ...

सिर्फ एक हिस्से का चमकना भारत का चमकना नहीं है पूर्वोत्तर जल रहा है , कश्मीर में चैन नहीं , विदर्भ में किसान मरते हैं , बुंदेलखंड में लोगो को पानी नहीं ... लेकिन हम कुछ देखना नहीं चाहते , अगर कोई बोलता है तो उसको भी इस अघोषित सेंसरशिप के टेल चुप करा दिया जाता है ... अरुंधती बोलती है तो भी आतंवादी कहलाती हैं , इरोम शर्मिला चानू नहीं बोलती , दस साल से भूख हड़ताल पर है तब भी आतंकवादी कहलाती है ........

क्या सिर्फ इंडिया ही है जिसमे लोकतंत्र हैं अभिव्यक्ति की आजादी है भारतियों का क्या ? उनका कोई अधिकार नहीं ? उनके लिए कोई संविधान नहीं ?

वर्तमान भारत का सच !



आज आप भारत को देख सकते हैं , ये एक राष्ट्र नहीं बल्कि दो महादीप में बदल रहा है . अगर आप अमीर है माध्यम वर्ग में गिने जाते हैं अंग्रेजी भाषा पर पकड़ रखते हैं , तो कोई शक नहीं की आपका भविष्य उज्जवल है आप उस महाद्वीप का हिस्सा हैं जहाँ अवसर ही अवसर हैं आपके पास रहने को शानदार जगह है , रोजगार की दिक्कत नहीं , बढ़िया शराबखाने , बढ़िया मकान , परिवार के साथ छुट्टी बीतने का भरपूर अवसर आपके पास है , आपको मताधिकार की पूरी आजादी है .. आप एक शानदार लोकतंत्र का हिस्सा है और उस पर गर्व कर सकते है ...

लकिन अगर आप निम्न वर्गीय हैं , पिछड़े , गरीब ,आदिवासी, दलित या मुस्लिम हैं ( एक छोटे भाग को छोड़कर ) तो आप के लिए दूसरा महाद्वीप इन्तजार कर रहा है , जो अंधेरो से भरा हुआ है जहाँ कोई साफ़ भविष्य नहीं है आपसे अवसरों और गरिमामय जीवन जीने की आजादी दूर होती जा रही है ...

हमारे देश में अमीर और गरीब की खाई निरंतर चौड़ी होती जा रही है क्या आपने कभी महसूस किया है ? गरीब और गरीब हो रहा है अमीर और अमीर हो रहा है , लेकिन जो इस बात को महसूस करेगा .. जो भी निम्न वर्गीय, पिछड़े , गरीब ,आदिवासी, दलित और मुस्लिम के हक़ में लिखेगा या बोलेगा ... उसका विरोध करने को तैयार मिलेंगे फासीवादी , साम्प्रदायिक , कट्टरपंथी अपनी अपनी विचारधारा का पताका थामे राजनितिक संगठन और कार्पोरेट जगत के साम्राज्यवादी ....... कारपोरेट जगत हमेशा इनको प्रायोजित करता रहेगा क्योंकि ये बाजारवादी संस्क्रती है जहां मध्यम वर्ग का तुष्टिकरण जरुरी है क्योंकि वो पूंजीवादी संस्क्रती का आधार है वो एक बड़ा बाज़ार हैं

क्या आपने कभी महसूस किया है ?

बाबा तेरी यही कहानी -- गले में चुन्नी आँख में पानी :-(



बाबा रामदेव ने काफी समय पहले कहा था की उनसे एक मंत्री ने रिश्वत मांगी है ,, अब बात बीजेपी वालो के गले की हड्डी बन गयी थी ,, उनमे और बाबा जी में क्या सेट्टिंग हुई ये तो वाही जाने ,, क्योंकि इस बीच बाबा पर जमीन हड़पने के केस भी हो चुके थे ,, और संतो में उनके खिलाफ गुस्सा भी था क्योंकि उन्होंने संत दर्शन नामक पुस्तक में हिंदू समाज को काफी नकारात्मक बातें कही थी ...

बाबा की राजनितिक विकल्प की घोषणा से बीजेपी भी परेशान थी क्योंकि बाबा ने बीजेपी के ही वोट काटने थे ,, बाबा की लोकप्रियता से संघ में भी हलचल मची पडी थाई क्योंकि लोगो ने शाखा के बजाय शिवरो में जाना शुरू कर दिया था आखिर बाबा निरोगी ? बना रहे थे .. वो परम योगी थे ? ये अलग बात है की नो दिन के अनशन में उनकी चीखे निकल गयी और गंगा पुत्र परम पूज्य स्वामी निग्मानंद जी ( जिनको फेसबुक पर भुला दिया ) चार माह अनशन के बाद वीरगति को प्राप्त हुए ..

खेर आगे चलते हैं बाबा बेचारे भोले भले मानुष , ठीक रजिया गुंडों में फस गयी जेसे कांग्रेस , बीजेपी और संघ के चक्कर में ऐसे घनचक्कर बने की रामलीला मैदान से अर्धनारीश्वर बनकर निकले .. यहाँ से बाबा को बर्बाद करने का जिम्मा बीजेपी ने उठाया उसने बाबा को हरिदावार्र में अनशन पर बैठा दिया

सोचने वाली बात है की वहाँ बाबा से कांग्रेस को कोई दिक्कत नहीं थी ये कांग्रेस और बीजेपी की चाल थी ताकि बाबा का अनशन ढंग से फ्लॉप हो जाये और बाबा जिंदगी में राजनितिक विकल्प की बात न सोचे

वही हुआ भी .. बाबा तुमको तो अपनों ने मरवा दिया .. ही ही ही ही

""""""""" राजीनीति किसी की नहीं होती बाबा """""""""""""""""""

अब अपना व्यापार भी खो दिया आपने , प्यार भी खो दिया .... अब बताऊँ क्या होगा ,, बहुत पड़ेगी ,,, दोनों मिले हुए हैं कांग्रेस भी बीजेपी भी .... थोडा बहुत संघ को भी तो प्यार है आपसे ,, अब देखो कहाँ कहाँ से कौन कौन सी जांच करवाते हैं ये आपकी !



Thursday, July 21, 2011

लोकतांत्रिक आस्था के कातिल !


किसी भी संसदीय व्यवस्था में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों का महत्त्व होता है, एक आदर्श संसदीय व्यवस्था वही है जहाँ विपक्ष मजबूत और जागरूक हो जो सत्ता पक्ष पर आदर्श दबाव बनाये रखे, ना की ऐसा विपक्ष जो सरकार को समुचित रूप से उसके कृत्यों पर घेर ना... सके और उसकी नीतियों पर सवाल उठाने की बजाय विरोध की राजनीति में इतना गम हो जाये की सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने की बजाय व्यक्तिगत जीवन पर आक्षेपो की गन्दी राजनीति में उतर आये !
प्रारम्भ में यध्यपि कांग्रेस का वर्चस्व रहता था परन्तु विपक्ष में अनेक कद्दावर नेता होते थे, लेकिन वर्तमान परिद्रश्य को देखते हुए मेरा चर्चा का विषय इंदिरा युग के अवसान के बाद से शुरू होता है !
१९९० के आस पास से बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही राजनीति रह गयी है तथा अन्य दल मात्र इनके आस पास ही रह गए हैं जो एक अच्छा संकेत हो सकता था की दो पार्टी मुख्य दल रहे जिसमे की स्थायी सरकार की सम्भावना अधिक रहती है हम जानते हैं की संघ के प्रभाव वाली पार्टी बीजेपी १९९० में एक लहर के परिणामस्वरूप आश्चर्यजनक रूप से उभरी, और यही लहर इसको संघर्ष की राजनीति से परिचित नहीं करवा पायी जिस पर आगे चर्चा की जायेगी !
हम जानते हैं की १९९१ की कांग्रेस की सरकार एक लचर सरकार थी जो विश्व बेंक और उदारीकरण की नीतियां लायी, सबसे बड़ी विपक्ष की गलती यहाँ ही थी, या कहें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की मिलीभगत या विदेशी दबाव यहाँ साफ़ दीखता है, जब उदारीकरण हो रहा था ,जिस समय हमारे संसाधन विदेशी हाथो में जा रहे थे, जब रोजी रोटी, रोजगार और हमारे प्राक्रतिक संसाधनों पर हक हकूक पर चर्चा होनी चाहिए थी तो विपक्ष भावनाओ की राजनीति में व्यस्त था, विपक्ष को ये भान ही नहीं था की हम आर्थिक गुलाम बनने जा रहे हैं, और हमें एक ऐसा उदारीकरण मिला जिसने अमीर गरीब की खाई को और बढा दिया, भारत भले ही चमक गया हो परन्तु भारतीय और बुरी दशा में गए !
इसके बाद की सरकारे आई जी खिचड़ी सरकारे थी, जिन पर चर्चा यहाँ का विषय नहीं है फिर बीजेपी की प्रथम स्थायी सरकार आई जिससे देश को बहुत उम्मीदे थी लेकिन ये भी कांग्रेस की तरह ही निकली. जनता को जल्द ही पता चल गया की राष्ट्र , धर्म, गौरव, संस्कृति आदि की बातें मात्र छलावा साबित हुई. इंडिया शाईनिंग का नाटक फेल हो गया और २००४ से बीजेपी का मुख्य विपक्षी पार्टी का सफर शुरू हुआ और जो कांग्रेस की निक्कमी सरकार के लिए आनद का सफर रहा !
बीजेपी ने भारत को कभी मजबूत विपक्ष नहीं दिया जिस्जा लाभ कांग्रेस ने बखूबी उठाया, बीजेपी का अटल चेहरा छुप जाना भी इसका मुख्य कारण रहा क्योंकि नए पीढ़ी के नेता संघर्ष से परिचित नहीं थे और ४० साल से राजनीति कर रहे आडवानी जी कभी इस बात को एहसास नहीं करा पाए की एक विपक्ष के रूप में जनता की समस्याओं पर वो सरकार को घेर रहे हैं ...!
बीजेपी का इतिहास है की उसने मुद्दों को छोड़कर भावनाओ की राजनीति की है उत्तर प्रदेश से जहाँ उसने अपना शानदार आगाज़ किया था वहा भी उसका जनाधार नहीं बच पाया, बीजेपी की रणनीतिक भूलो की एक लंबी लिस्ट है मगर जो मुझे एक विपक्ष के रूप में याद है वो निम्न रूप में समझी जा सकती है..... !
२००४ में बीजेपी ने सोनिया के विदेशी मूल का भावनात्मक मुददा उठाया और व्यक्तिगत आक्षेपो की राजीनीति की शुरुआत की ये एक भावनात्मक मुददा था जिसे सोनिया ने प्रधानमंत्री का पद ठुकरा कर अपना कद बढाने का आधार बनाया और वो और मजबूत हो गयी और ये तो सबको पता है की राजा से बड़ा उसे बनाने वाला होता है !
यहाँ सुषमा स्वराज की अजीब अजीब घोषणाओ ने भी बीजेपी का खूब मखौल बनाया और जनता के बीच कहीं कहीं उनके प्रति नकारात्मक सन्देश गया ! इस लोक सभा में मुख्य विपक्षी पार्टी सरकार को क्या घेरती? वो अपने अंतरकलहो से ही जूझती रही, आडवानी जी ने अपने विश्वासपात्रो से कुछ अधिक ही प्रेम दर्शा दिया जिससे बीजेपी में अन्दुरुनी घमासान मचा रहा !
बीजेपी की एतिहासिक भूल अगली लोकसभा में भी जारी रही जहाँ उसे मनमोहन सरकार के शासनकाल पर सवाल उठाना चाहिए था वहाँ उसने मुददा बनाया कमजोर प्रधानमंत्री बनाम मजबूत प्रधानमंत्री? नीतियों की चर्चा एजेंडे की, जनता को अब दोनों में से एक चुनने का विकल्प था, जनता ने आडवानी को कमजोर समझ लिया, ये व्यक्तिगत रूप से केंद्रित राजनीति का एक और उदाहरण रहा जिसमे बीजेपी ने मुह की खायी !
बीजेपी एक और अंतर्कलह होता है जो उसे कमजोर करता है, संघ की प्रष्टभूमि के नेताओ को गेर संघी नेताओं पर वरीयता मिलना जिस कारण अक्सर संघ से ऐसे नेता बीजेपी को निर्यात किये जाते हैं जिनमे राजनितिक समझ का पूर्ण आभाव होता है वर्तमान अध्यक्ष इसके उदाहरण है जो शायद किसी भी अन्य दल की अपेक्षा सबसे कमजोर हैं !
बीजेपी में अनुशासन का हमेशा आभाव रहा है, जसवंत सिंह, उमा भारती, सुषमा स्वराज, कल्याण सिंह, इत्यादी नेताओं के वक्तव्यों ने पार्टी की खूब फजीहत करवाई कई तो अंदर बहार के खेल में ही लगे रहे, आज भी पता नहीं कब कोई कौनसी किताब लिख दे , कब कोई कहीं सजदा कर दे और कब उमा भारती पार्टी मीटिंग में लड़ पड़े ये पता नहीं चलता !
अगर आपको कारगिल याद है तो याद कीजिये की अपनी जमीन में घुस आये आतंकवादियों को भागकर सेकडो जवानो की कुर्बानी को विजय दिवस के रूप में बीजेपी ही मना सकती है !
अमृतसर में खड़े जहाज को कंधार भेजकर आंतरिक मामले को विदेशी बनाने की कला कथित लोह पुरुष के ही बस की बात है !
पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष इतना कमजोर था की बेचारा स्टिंग ऑपरेशन में पैसे खाते पकड़ा गया !
चलिए आगे बढते हैं वर्तमान समय में भी बीजेपी ने विपक्ष के रूप में हमेशा गलत समय पर गलत जगह उपस्थिति दर्शायी है जेसे__
संयुक्त संसदीय समिति पर संसद चलने देना. जबकि ये सबको पता है की इसका गठन चार बार हुआ और हल कुछ नहीं निकला क्योंकी इसकी रचना ही इस प्रकार होती है की सत्ताधारी आराम से रह सकते है हाँ विपक्षियो को जो इसके सदस्य बनते हैं कुछ भत्ते जरुर मिल जाते हैं, यहाँ जनता की नजर में ये मुददा कोर नाटक साबित हुआ और विपक्षी दल मात्र नौटंकी करने वाले साबित हुए !
कामनवेल्थ, जी स्पेक्ट्रम और आदर्श घोटाला जेसे कई घोटालों पर जहाँ सरकार को आराम से घेरा जा सकता था वहा विपक्षी दल "लाल चौक " पर झंडा फेहराने निकल लिए !
अगर आपको याद हो तो बीजेपी जिस सोच का प्रतिनिधत्व करती है वो अब्दुल्ला परिवार को डा० श्यामा प्रसाद मुखर्जी का कातिल मानती है पर बीजेपी ने इनसे गठबंधन किया था और उस समय कोई झंडा "लाल चौक पर फेहराना याद नहीं था !
अभी अभी जब अन्ना नेताओं पर गरज रहे थे सरकार के भ्रष्टाचार पर आंदोलन कर रहे थे तो अपने ब्लॉग पर आडवानी जी सफाई दे रहे थे, अजीब खेल है !
अब इसे सत्ता पक्ष और विपक्ष की मिली भगत मानी जाये या क्या कहा जाये जो इतने सारे मुद्दों पर विपक्ष ध्यान नहीं देता है !
बीजेपी की सबसे बड़ी कमी यही है की वो यथार्थ और व्यावहारिकता से दूर भावनात्मक और व्यक्तिगत आक्षेपो और संप्रदाय विशेष पर केंद्रित राजनीति पर ही अटकी है जबकि भारत की जनता पिछले २० सालो में बहुत परिपक्व हो गयी है इसलिए बीजेपी केन्द्र की राजनीति में निरंतर बुरी अवस्था में है !
हम आशा करते हैं की बीजेपी अपनी भूलों से सबक ले और भारत की संसद में विपक्ष की भूमिका असरदार तरीके से निभाए ताकि एक आदर्श लोकतंत्र की स्थापना हो सके ............!

अंत में { एक सवाल अन्ना से पूछना था आखिर अन्ना आप बीजेपी का समर्थन लेने किस आधार पर गए ? क्या आपको लगता है की बीजेपी ने लोकतंत्र को प्रभावी बनाने और भ्रष्टाचार पर सरकार को घेरने का कोई प्रयास किया है, दरअसल आपकी भी अपनी महत्वकांक्षाएं है ..पर ऐसे थोड़े ही होता है }

____________मीतू Copyright © 20 July 2011 at 20:50

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Saturday, July 16, 2011

जंतर मंतर---जादू मंतर !!


क्या ? सचमुच ? अरे हाँ .................!

अन्ना हजारे १६ अगस्त से फिर जंतर मंतर पर अनशन पर बैठेंगे ? जंतर मंतर नहीं पता क्या ?

जंतर मंतर जादू मंतर ......... शूऊऊऊऊ ............. भरष्टाचार गायब !!


पहले भी तो बेठे थे उनको देखा देख एक बाबा भी अपने भक्तो को क्रांतिकारी बताकर रामलीला करने बैठ गए थे, एक ही मुददा था पर अढाई चावल की खिचड़ी दोनों अलग अलग पका रहे थे दोनों के सामने भ्रष्टाचारी सरकार थी , जिसने _____

  1. अन्ना और सिविल सोसायटी की हालत आटे के चिराग सामान कर दी, जिसे घर रखूं तो चूहा खाए बाहर रखूं तो कव्वा ले जाये !
  2. बाबा बेचारो का तो वही काम हुआ , आज मेरी मगनी कल मेरा ब्याह टूट गयी टंगड़ी रह गया ब्याह, एक दिन का शो एक दिन में खत्म, सारी राजनितिक महत्वकांक्षाएं धरी की धरी रह गयी . कोई राजनितिक विकल्प न मिला जनता को !

सरकार के सामने दोनों अंडे रह गए जो बच्चे को ची ची करना सिखाना चाह रहे थे ..........!!


याद है , जब अन्ना जंतर मंतर पर बेठे थे तो वो बिलकुल गंगा स्नान, चार धाम और मक्का हज यात्रा जेसा पवित्र बना हुआ था ! लगता था जंतर मंतर चले जाओ और सारे पाप धो आओ, सारे पाप उन् दिनों पुण्य में बदल रहे थे ! अरे हाँ ,पुण्य से याद आया जब तक बीवरेज का पानी नही था तो पानी पिलाना भी पुण्य का काम था आजकल तो व्यापार बन गया है , खैर ऐसे पुण्य तो आपने कई किये होंगे पर जंतर मंतर आप गए थे या नहीं ?

अरे सारे धरने प्रदर्शन, देश प्रेमी राजनितिक रेलियां वही होती हैं भूख हडतालो का तो धाम है जी , कुल मिलकर भारत का लोकतंत्र वही बसता है आप गए थे या नहीं ? बुलाया तो होगा आपको भी ? MSG, MAIL, FACEBOOK, TWITTER, के जरिये नहीं बुलाया क्या ? अरे सारी क्रांति आजकल यही तो होती है नारेबाजी देशभक्ति और आस्था का तो धाम है फेसबुक, और सबसे बड़े देशभक्त है ये - फेस्बुकिया देशभक्त ! खैर , आप जंतर मंतर गए थे या नहीं ?

अरे वहाँ पब्लिक स्कूलों के गिटर पिटर अंग्रेजी बोलने वाले बच्चे थे, विश्वविद्यालय के छात्र थे , जामिया वाले भी थे ,डी०यु० वाले भी तफरीह करने नहीं गए थे, आई पी एल के दीवाने भी वही थे. वहाँ बहुराष्ट्रीय कंपनियों के चहेते मध्यम वर्ग के वे लोग भी थे जो अपने बच्चों को आंदोलन, क्रान्ति, नेतिकता और देशभक्ति का पाठ पढाने आये थे, यहाँ हालत ऐसे थे की "आँख एक नहीं और कजरोटा दस दस" !! खैर , आप जंतर मंतर गए थे या नहीं?

पता है -- वहाँ पर सब थे अगर नहीं थे तो, किसान नहीं थे, मजदुर नहीं थे, दिहाड़ीदार नहीं थे, ठेला रिक्शा चलने वाले नहीं थे दलितो और पिछडो गरीबो का वहाँ कोई स्थान नहीं था, भला क्रान्ति से इनका क्या मतलब , अब भले ही देशवासियों की हालत "आँख के आगे नाक सूझे क्या ख़ाक " जैसी ही थी. अरे जब वहा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मेनेजर थे तो भला किसानो का वहा क्या काम ? खेर जाने दीजिए आप जंतर मंतर गए थे या नहीं ?

सोचने की बात है अगर किसान आंदोलन करेंगे जंतर मंतर आयेंगे तो दिल्ली का ट्रैफिक जाम न होगा? मीडिया दिन भर उनको न कोसेगी क्या ? कि किसानो ने रास्ता जाम कर दिया पूरी दिल्ली परेशान है, अब भले ही किसान मरते रहे आत्महत्या करे , भाई ये उनका रोज का काम है कोई सरकार या मीडिया या कोई अन्ना क्यों सुने उनकी, भला उनके साथ क्या बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मनेजर होते है क्या ? और जिसके साथ कंपनिया नहीं उसके साथ मीडिया नहीं, ये विज्ञापन का खेल है भैया? अन्ना की तरह अपने साथ मेंनेजर लाकर दिखाए तो सही किसान, तभी तो क्रान्ति मानी जायेगी, लेकिन पता नहीं आप जंतर मंतर गए थे या नहीं ?

खेर आपके लिए एक खुशखबरी है. १६ अगस्त से अन्ना हजारे फिर अनशन पर बैठ रहे हैं,, फिर पवित्र माहोल होगा ? राजनीति और नेताओं को गाली दी जायेगी , गाली सरकारी नेताओं को होगी ब्लॉग पर सफाई आडवानी जी देंगे, ऐसा पवित्र माहौल होगा की सारे पाप धुल जायेंगे. अबकी बार तो आप जायेंगे न ?

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अब हम काहें कुछ बोले, आजकल क्रान्ति गिटार पिटर अंगरेजी वाचको, बहुराष्ट्रीय कंपनी के मनेजरो, और भरपूर मिडिया कवरेज से ही तो आवत है , औरो की का जरुरत ? ऊ तो सिरफ बोझ ही बने हुए हैं जी , एक बात कहूँ अन्ना जी ,,,,,,,, कुछ भी करना पर बाबा जइसन न होना देना की आगे जाऊं तो घुटना टूटे पीछे हटूं तो आँख फूटे, अन्ना पक्का जंतर मंतर को तहरीर चौक बना देंगे भले ही वास्तविक क्रांति हो या न मीडिया तो हैं न , मेनेजर हैं न, बहुराष्ट्रीय कंपनियां साथ हैं तो ------------- !!

मीतू !! ........... Copyright © .....17:7:2011 ... 12:30 am..


Thursday, July 7, 2011

आखिर कब तक !!


_____________________आखिर कब तक____________________
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भारत की राजनितिक पार्टियों का वोट की राजनीति की खातिर लोकतंत्र का मजाक बनाने का एक लंबा इतिहास रहा है और इसमें सभी दल एक जैसे ही हैं कोई नंदीग्राम में सना है कोई दिल्ली के सिख दंगो में तो कोई गुजरात और अयोध्या में .. महारष्ट्र में कोई साफ़ है दक्षिण भारत में ... पहले प्रदर्शन और विरोध का आतंक एक बड़े स्तर पर पर होता था मगर आज हालत बदल गए हैं !

कहा जाता है अपराध से घृणा करो अपराधी से नहीं, और उस परिस्थिति में जहाँ अपराधी अपराध की सजा पा ले वहा वह सामन्य जीवन का अधिकारी होता है---- बात हो रही है नीरज ग्रोवर हत्याकांड में सजा पा चुकी मरिया की .. जो अब अपने जीवन को सामन्य जीने के लिए संघर्षशील है !
लेकिन अब उसको सामने जीवन जीने का अधिकार नहीं दिया जायेगा ये कहना है इस ज़माने के नए खुदाओ का .......

आज सवाल उठता है की राजनितिक पार्टियां संविधान और न्यायव्यवस्था से ऊपर है ? हर बात को वोट की राजनीति से जोड़कर लोगो को आतंकित करना इन खुदाओं का नया चलन है यहाँ सवाल ये नहीं की मारिया का गुनाह कितना बड़ा या छोटा था निसंदेह मारिया ने बुरा कार्य किया और सजा पायी लेकिन जब वो न्यायालय द्वारा सजा पा चुकी है तो क्यों उसको सामन्य जीवन जीने के लिए आतंकित किया जा रहा है ..?

मात्र राम गोपाल वर्मा द्वरा उसकी कहानी पर फिल्म बनाने की घोषणा से जिस प्रकार भारत के एक राजनितिक दल ने प्रदर्शन किया है और जंगलराज की स्थिति पैदा की है सवाल उठता है क्या ये अपराध नहीं है ?

इस देश में न्याय और व्यवस्था के प्रहरी ही जब न्याय का निरादर करते हैं और वो भी इतने बुरे प्रतिक्र्यात्मक तरीके से ..व्यक्ति विशेष के खिलाफ प्रदर्शन करते हैं तो आखिर क्या समझा जाये वो जनता को क्या सन्देश देना चाहते हैं की अब वही सबसे बड़े न्यायालय बन चुके हैं और देश में जंगलराज चुका है अगर उन खुदाओं की नहीं मानी गयी तो तोड़ फोड होगी धमकियाँ मिलेगी , शायद जान से भी मारा जा सकता है !

इस देश में जबकि सरकार निरंतर भ्रष्टाचार में लिप्त थी तब तो मुख्य विपक्षी दल उससे बहस करने उसे घेरने की बजाय संसद नहीं चलने देकर उसकी मदद ही कर रहे थे .. आज व्यक्ति विशेष के खिलाफ कितने उर्जावान हैं !

आज हमारे सामने सबसे बड़ा सवाल है की राजनितिक दलो का कोई नैतिक आचरण होगा भी या नहीं होगा ... सवाल मारिया का नहीं है क्योंकि चार दिन में ये भी खत्म हो जायेगा .. सवाल है की आखिर कब तक हम इस जंगलराज और वोट के राजनितिक तमाशो के मूकदर्शक बनकर सहते रहेंगे !

सवाल बीजेपी कांग्रेस बसपा समाजवादी वामपंथी या अन्य दलों की विचारधारा के समर्थन या विरोध का नहीं है क्योंकि एक विशेष परिस्थिति में सभी दल एक जेसा ही व्यवहार करते हैं .. यहाँ सवाल है की ▬▬▬ "कब तक नए ज़माने के ये खुदा न्याय और व्यवस्था का मजाक बनाते रहेंगे ...कब तक न्याय की देवी यूँ ही आँखों पर पट्टी बांधे रखेगी ??"
सवाल तो न्याय और व्यवस्था के प्रति इनकी टूटी हुई आस्था का है !

__________________________​_ मीतू !!__ ७ जुलाई २०११ रात्रि १०:३०
 

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