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Sunday, June 5, 2011

लरजती आस्था !

अभी नव वर्ष ने दस्तक ही दिया था तभी मेरे स्वास्थ्य ने मुझे अस्पताल का रास्ता दिखा दिया ..... सर पर कुछ कर जाने का जूनून लिए मैं खुद से लडती रही .... एक बार तो यूँ भी महसूस हुआ की अब मैं न बच पाउंगी .... यूँ अनाम मौत मरना भी न चाहती थी ...... ढेरो चेक-अप हुए , एक-एक कर के सारे रिपोर्ट नार्मल आये .... आँखों में चमक बढती गई और ईश्वर पर आस्था भी !

फिर शुरू हुआ पुस्तकालय का चक्कर , पुस्तको की बड़ी-बड़ी अलमारियो में शीर्षक को घूरती हुयी दो आँखे .... अपने मतलब की पुस्तक को तलाशती हुई मेरी खोजी नज़रे ... दुनिया के ढेर सारे रास्तो में से इन किताबो के सहारे अपनी मंजिल को ढूंढने का फिर से प्रयास करने लगी !
घर में आये हुए एडमिट कार्ड्स , काल लेटर्स बड़ी हसरत से मेरी और तकते रहते थे ........ उन सारे लेटर्स की सभी तारीखे अपनी डायरी में करीने से लिखकर ट्रेन/वायुयान में रिजर्वेशन करा लिया गया था !

मार्च से लेकर अब तक ज्यादातर समय प्रवास में ही बीत रहा है , समयाभाव और रिजर्वेशन की मुश्किल के चलते मुझ निहायत साधारण लड़की का सफ़र ट्रेन की बजाय सफ़र वायुयान में हो रहा है ..... उड़ान एक आकाश से दुसरे आकाश तक !
अचंभित कर रही है ये तरह-तरह के कम्पनियो की फ्लाइटे , उनके एयर होस्टेस एवं होस्ट और उनका मशीनी व्यवहार !

पिछले माह मेरा इम्तहान एक छोटे से शहर में था , रहने की व्यवस्था उस शहर के महराजा के महल को खरीद कर बनाए गए होटल में थी ....रात १० बजे मैं होटल में पहुँच गई ...... लगभग ४८ घंटे का प्रवास था ! मन तो था की उस महल के बचे हुए अवशेष को नजदीक से जाकर देखू , उनकी दीवारों को छूकर उस समय की भव्यता को महसूस करू ! रात भर नींद न आई , अलसुबह कमरे की नकली ठण्ड वाली एयर कंडिशनर से निकल कर प्रकृति के बीच चहलकदमी करने के लिए बाहर निकल आई .... अभी बारिश ही हुई थी , सारी सड़के , पेड़-पौधे भींगे हुए थे .... होटल के सामने ही एक तालाब था जिसके बीच में टापूनुमा बनाकर उसमे पेड़-पौधे लगा दिए गए थे.....(क्रमशः )
 

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