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Thursday, June 10, 2010

वो शख्स किस क़दर था बुलंद


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जरा ये सोच कि वो शख्स किस क़दर था बुलंद ,

जो ज़िन्दगी से कभी हारा नहीं !

बैचैन रहता था विस्तार पाने को ,

उत्सुक रहता था भोर की स्वर्णिम पारदर्शी किरणों की तरह फ़ैल जाने को !

उड़ता रहता था वो पंछी की तरह स्वच्छंद आकाश में ,

रोक नहीं पाता था कोई उसे आत्मसाक्षात्कार से ,

चलते चलते निकल जाता था ,

वो बहुत दूर कहीं ,

जहां कोई किनारा होता नहीं ........

तय करता था वह अपना अनजाना सफ़र ,

केवल खामोश और तनहा ,

बाँध नहीं पाता था कोई ,

सामाजिक बंधनों का बाँध उस पर ..........

नहीं परिसीमन करता था वो उन रिश्तों को ,

जो वो निभा सकता था नहीं .....

जीता था वो तनहा,

करता था वो अपने दिल की !

तभी तो बह नहीं पाया .....

वह वक़्त की बाढ़ में ,

क्यूंकि वह दूर नहीं था

स्वयं से !
..................MEETU.................
 

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