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जरा ये सोच कि वो शख्स किस क़दर था बुलंद ,
जो ज़िन्दगी से कभी हारा नहीं !
बैचैन रहता था विस्तार पाने को ,
उत्सुक रहता था भोर की स्वर्णिम पारदर्शी किरणों की तरह फ़ैल जाने को !
उड़ता रहता था वो पंछी की तरह स्वच्छंद आकाश में ,
रोक नहीं पाता था कोई उसे आत्मसाक्षात्कार से ,
चलते चलते निकल जाता था ,
वो बहुत दूर कहीं ,
जहां कोई किनारा होता नहीं ........
तय करता था वह अपना अनजाना सफ़र ,
केवल खामोश और तनहा ,
बाँध नहीं पाता था कोई ,
सामाजिक बंधनों का बाँध उस पर ..........
नहीं परिसीमन करता था वो उन रिश्तों को ,
जो वो निभा सकता था नहीं .....
जीता था वो तनहा,
करता था वो अपने दिल की !
तभी तो बह नहीं पाया .....
वह वक़्त की बाढ़ में ,
क्यूंकि वह दूर नहीं था
स्वयं से !
..................MEETU.................
"तभी तो बह नहीं पाया .....
ReplyDeleteवह वक़्त की बाढ़ में ,
क्यूंकि वह दूर नहीं था
स्वयं से !"
पते की बात - शब्दों और भावों का अच्छा मंजस्य
बेहतरीन !!!
ReplyDeleteलिखते रहे । स्वागत है ।
Umda rachna meetu ji....!!
ReplyDeletebahut hi achhi rachana hai meetu ji. congrats
ReplyDeleteachchhi rachna hai
ReplyDeleteवो बहुत दूर कहीं ,
ReplyDeleteजहां कोई किनारा होता नहीं ........
तय करता था वह अपना अनजाना सफ़र ,
केवल खामोश और तनहा ,
बाँध नहीं पाता था कोई ,
सामाजिक बंधनों का बाँध उस पर ..........
नहीं परिसीमन करता था वो उन रिश्तों को ,
जो वो निभा सकता था नहीं .....
जीता था वो तनहा,
वाह बहुत सुन्दर लिखा है।
मनभावन रचना, दिल को छू जाने वाली रचना,
ReplyDeleteअति सुन्दर, सटिक, एक दम दिल कि आवाज.
कितनी बार सोचता हु कि इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है.
अपनी ढेरों शुभकामनाओ के साथ
shashi kant singh
www.shashiksrm.blogspot.com
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
Bhavon kee behatareen abhivyakti.
ReplyDeleteबहुत प्रभाव शाली रचना...लिखती रहें...
ReplyDeleteनीरज
bahut hi sundar rachna meetu ji...
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