क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान ! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर लेखन का रूप ले लेते है!! --- किरण श्रीवास्तव !!
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Sunday, December 13, 2015
ततैया !
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आज सुबह की बात है , मैं अभी पढ़ने ही बैठी थी कि मैंने देखा मेरे स्टडी टेबल पर एक नन्हा ततैया (बर्र,बर्रैया / पीली हाड़ी/wasp) उड़ने की कोशिश में इधर-उधर बैठ रहा था। मैं डर गई , कहीं मुझे काट न ले। (एक बार बचपन में काटा था , बहुत दर्द हुआ था और ३-४ दिन तक पूरा हाथ सूजा था।) मैं उसे मारना नही चाहती थी। किताब से हटाने की कोशिश की तो वो और नजदीक आ गया। अब मुझे उसको लेकर टेंशन हो गया। फिर मैंने अपने पानी के बोतल का पूरा पानी पीकर उस बोतल को ततैया के पास लगाया , ततैया अंदर चला गया। मैंने भी बोतल में ढक्कन लगाकर बंद किया और उसे भूल गई। करीब २ घंटे के बाद अचानक बोतल पर निगाह पड़ी तो मैंने देखा , वह नन्हा सा ततैया का बच्चा निकलने के लिए परेशान है। कभी वह अपने नन्हे कदमो से बोतल के तले की तरफ जाता तो कभी ढक्कन की तरफ। मुझे उसकी बेचैनी नही देखी जा रही थी। मुझे लगा की कभी मैं ऐसी स्थिति में फंस जाऊं तो क्या होगा। अब मैं इस कल्पना से और भी परेशान हो गई। मैं उस बंद बोतल को लेकर बालकनी में आई ,फिर बोतल को ठोंककर ततैया को तले की तरफ किया और उसका ढक्कन खोलकर बाहर फेंक दिया। मैं रूम में आकर निश्चिन्त होकर सो गई। सर से एक बोझ उत्तर गया था।
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