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Thursday, June 10, 2010

वो शख्स किस क़दर था बुलंद


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जरा ये सोच कि वो शख्स किस क़दर था बुलंद ,

जो ज़िन्दगी से कभी हारा नहीं !

बैचैन रहता था विस्तार पाने को ,

उत्सुक रहता था भोर की स्वर्णिम पारदर्शी किरणों की तरह फ़ैल जाने को !

उड़ता रहता था वो पंछी की तरह स्वच्छंद आकाश में ,

रोक नहीं पाता था कोई उसे आत्मसाक्षात्कार से ,

चलते चलते निकल जाता था ,

वो बहुत दूर कहीं ,

जहां कोई किनारा होता नहीं ........

तय करता था वह अपना अनजाना सफ़र ,

केवल खामोश और तनहा ,

बाँध नहीं पाता था कोई ,

सामाजिक बंधनों का बाँध उस पर ..........

नहीं परिसीमन करता था वो उन रिश्तों को ,

जो वो निभा सकता था नहीं .....

जीता था वो तनहा,

करता था वो अपने दिल की !

तभी तो बह नहीं पाया .....

वह वक़्त की बाढ़ में ,

क्यूंकि वह दूर नहीं था

स्वयं से !
..................MEETU.................

11 comments:

  1. "तभी तो बह नहीं पाया .....
    वह वक़्त की बाढ़ में ,
    क्यूंकि वह दूर नहीं था
    स्वयं से !"
    पते की बात - शब्दों और भावों का अच्छा मंजस्य

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  2. बेहतरीन !!!

    लिखते रहे । स्वागत है ।

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  3. bahut hi achhi rachana hai meetu ji. congrats

    ReplyDelete
  4. वो बहुत दूर कहीं ,

    जहां कोई किनारा होता नहीं ........

    तय करता था वह अपना अनजाना सफ़र ,

    केवल खामोश और तनहा ,

    बाँध नहीं पाता था कोई ,

    सामाजिक बंधनों का बाँध उस पर ..........

    नहीं परिसीमन करता था वो उन रिश्तों को ,

    जो वो निभा सकता था नहीं .....

    जीता था वो तनहा,
    वाह बहुत सुन्दर लिखा है।

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  5. मनभावन रचना, दिल को छू जाने वाली रचना,
    अति सुन्दर, सटिक, एक दम दिल कि आवाज.
    कितनी बार सोचता हु कि इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है.
    अपनी ढेरों शुभकामनाओ के साथ
    shashi kant singh
    www.shashiksrm.blogspot.com

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  6. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  7. बहुत प्रभाव शाली रचना...लिखती रहें...
    नीरज

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