
हमने बाणगंगा से 'अर्धक्वाँरी' जाने के लिए घोड़े लिए .... घोड़े वाले भी भक्तो की भारी भीड़ देखते हुए मनमाने पैसे ले रहे थे .... खैर, ३००० रुपये में ४ घोड़े तय हुए ..... मेरा घोड़ा सबसे आगे था ... लगभग १ किलोमीटर आगे चलने के बाद घोड़े वाले मेरा पर्स मुझे थमाया ... मैं अचंभित हो गई , मुझे पता ही नही चला की मेरा पर्स घोड़े पर चढ़ते वक्त मेरे जींस की जेब से कब गिर गया ..मेरे पर्स में लगभग ८००० रूपए थे ..... मैं उसकी इमानदारी से गदगद हो गयी ....उसका नाम रसीद था .... रास्ते भर मैंने उसे लेज , कॉफ़ी..इत्यादि उसे खिलाया-पिलाया ... घोड़े से उतरने के बाद जब मैं जब उसे उसकी ईमानदारी के लिए ५०० रूपए दे रही थी , मेरी आंटी ने इस एक्स्ट्रा पैसे देने का कारण पूछा ... मैंने तुरंत उसकी ईमानदारी के बारे में बताया .... तब आंटी ने बताया की उन्होंने मेरे जेब से पर्स को गिरते हुए और घोड़े वाले को मेरा पर्स उठाते हुए देख लिया था .... घोड़े वाले ने जैसे ही मेरा पर्स खोला आंटीने से उसे डांट दिया था कि " ए भैया , बिटिया का पर्स क्यूँ खोल रहे हो ?... उसे वापस करो .... फिर उसने तुझे वापस किया " यह सुनकर मैंने घोड़े वाले की तरफ देखा , उसके चेहरे का रंग उड़ा था .. जैसे की उसकी चोरी पकड़ी गई हो .. और वह कुछ भी कहने की हालत में नही था !
'अर्धक्वाँरी ' दर्शन का टिकट जो की ४० घंटे बाद का मिल रहा था ,लेने के पश्चात वहाँ के प्रांगण में मैंने देखा के एक अधेड़ उम्र के अंकल जी अपनी पत्नी के नाम की चालीसा जोर-जोर से पढ़ रहे थे ... बच्चे भी मुंह लटका कर माँ के पास खड़े थे ... अचानक अंकल जी ने जोश में आकर आंटी जी को धक्का दे दिया .... मैंने आंटी को थामा, उन्हें बैठाने की कोशिश की , किन्तु वह सार्वजनिक अपमान की वजह से फफकफफककर रोने लगी , बच्चे अपनी माँ को शांत कराने लगे .... और अंकल जी अब भी गलियाँ दे रहे थे .... मैंने उनके पास जाकर धीरे से कहा की "तुम्हारी इस हरकत के लिए पुलिस को बुलाऊं क्या " अंकल जी वहाँ से तुरंत अंतर्धयान हो गए !
माता के भवन पर माँ का दर्शन धक्कम-धुक्की के बावजूद बहुत अच्छी तरह से हुआ ...VIP लोगो को सिर्फ २५ मीटर की दूरी तय करनी होती थी .... और हमारे जैसे आम लोगो को १ किलोमीटर लम्बी लाइन में लगना पडा .....!
जितनी भीड़ माँ के दर्शनों के लिए थी उससे कही ज्यादा खाने-पीने के स्टाल और होटलों में थे .... चटपटे भोजन का स्वाद तारीफ़-और कमियां गिना कर भी लिया जा रहा था ... और कूड़े-कबाड़े से गंदगी फैलाने में उस भक्ति स्थल में भी कोई कमी नही छोड़ी गई थी !
यहाँ भक्ति भावना कम ... -हाँ ,पिकनिक स्पौट ज्यादा समझ में आता है !
करोड़ों के दान के बावजूद भी सुविधाए निम्न दर्जे की है !
भवन से दर्शन के पश्चात हम लोगों ने फिर घोडा किया- भैरो जी का दर्शन करके अर्धक्वाँरी तक के लिए ..... यहाँ भी ४ घोड़े ३००० में तय हुए ..... यहाँ मेरे घोड़े मालिक का नाम उत्तम था .. थोडा ही आगे बढे थे की उत्तम ने टैक्स देने के नाम पर २००० रूपए मांगे ..... मैं १५०० दे रही थी ... किन्तु वह अड़ा रहा .. आंटी ने उसे पैसे तो दे दिए किन्तु उत्तम मुझसे बुरी तरह चिढ गया .... भैरो जी के दर्शन के पश्चात् मुझे डराने के लिए उसने मेरा घोडा सबसे आगे बढाकर उसे बिकुडा कहकर उसकी पूंछ खींचकर भगा दिया .... किन्तु उसे नही मालूम था की मैं भी घुड़सवारी में पारंगत हूँ ..... मैंने तुरंत उस घोड़े की लगाम जो की बंधी हुई थी , उसे खोली और घोड़े को और भी तेज़ दौड़ा दिया ... अब पीछे वाले घोड़ो को सम्हालना मुश्किल हो गया और घोड़े मालिक की हालत खराब हो गई .... वह बिखुडा-इकडे-लिकुडा चिल्लाते एकदम पीछे दौड़ पडा ... फिर सीढियों से भी दौड़ते हुए उतरा ... मैंने भी घोड़े को अर्धक्वाँरी पर ही जाकर रोका .... उस दुष्ट को जमकर अपने पीछे दौड़ाया क्योकि मेरी जगह कोई भी होता तो उसकी इस हरकत से कुछ भी हादसा हो सकता था !
उसने गुस्से से मेरी और देखा .... मैंने भी उसे ऑंखें तरेर कर देखा .... बोला कोई भी कुछ नही .... उसने बाकी बचे पैसो के लिए और मैंने अपने परिजनों के लिए इंतज़ार किया !
भवन पर ही मैंने खाना लेते वक्त देखा की एक बुजुर्ग ने अपनी पत्नी के पीठ पर जोर से घूंसा मारा ..... रास्ते में कई पति-पत्नी लड़ते-झगड़ते देखे गए ... वही नव-विवाहितो में रोमांस भी खुलेआम देखने को मिला ..... यह कैसी श्रधा-भक्ति है , मुझे समझ में नही आई ... घोड़े वालो ने लूट मचा रखा है और उनके मन का न होने पर भक्तो के साथ कोई हादसा करने में भी पीछे नही हटते ! माता का दरबार भक्ति स्थल कम और पिकनिक स्पोट ज्यादा नज़र आता है ...... सच्चे श्रधालुओ और गरीब भक्त जो की घोड़े /हेलिकोप्टर का पैसा नही दे सकते उनके हिस्से में सड़क १/४ हिस्सा ही आता है ३/४ हिस्से को तो घोड़े वाले ही कब्जा कर लेते है ..... और कभी -कभी तो भक्तो के बीच इन घोड़ो की वजह से डर के मारे भगदड़ भी मच जाती है !
मैं यह संस्मरण आपसे साँझा कर रही हूँ...मित्रों ...बस इतना बताने के लिए कि भक्ति दिल से होनी चाहिए ,मन में श्रद्धा लेकर ही तीर्थयात्रा करें और वैष्णोदेवी तीर्थस्थल में इन घोडेवालों से भी सावधान रहें..साथ ही तीर्थस्थल पर गन्दगी न फैलाएं ,पवित्र तीर्थस्थल को पिकनिक स्पौट में न बदलें.....!!! जय माता दी !!!
(फोटो मेरे कैमरे से )
____ kiran srivastava ... Copyright © ... 21 :50 pm ....2:6:2012