क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान ! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर लेखन का रूप ले लेते है!! --- किरण श्रीवास्तव !!
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गुवाहाटी में मानवता को शर्मसार कर देने वाली घटना के बाद हिन्दू संस्कृति के स्वयंभू ठेकेदारों / पुरोधाओ ने बहुत सारे सुझाव दिए है/ सामने आये है-- जैसे की हम लडकियों को कितने मीटर कपड़ा पहिनने चाहिए ...... कितनी देर तक बाहर रहना चाहिए ..... किसी पार्टी में जाना चाहिए या नही ? और अगर लड़की इनके द्वारा तय मानक अनुसार न करे तो क्या इन्हें लडकियों के साथ बदतमीजी/छेड़खानी/ घसीटने/सिगरेट से जलाने/बलात्कार करने का अधिकार मिल जाता है ??
मुझे यह समझ में नहीं आता कि ये कौन होते हैं यह तय करने वाले कि कौन क्या पहने क्या न पहने ? क्या ये अपनी धोती/लुंगी/हाफ पैंट /बारमुड़ा हमसे पूछ कर पहनते हैं , जिसको ज़रा सा खींच भर दी जाए तो सारी उतर कर नीचे आ पड़े ..... पहने-पहने भी जिसमें से आधी टांगे नंगी दिखती रहती हैं !! स्त्रियों के लिए भी ऐसी ही कई अनसिली-अधखुली पोशाकों का प्रबंध हमारी संस्कृति में है.......लेकिन जब हम इनके पोशाकों पर आपत्ति नहीं करते तो इन्हें क्या अधिकार है कि सारे देश के स्त्रियों के लिए खाने-रहने-पहनने-नाचने-गाने का मैन्यू बनाएं ? क्या हम सबके बाप-दादा देश की सारी स्त्रियों का पट्टा क्या इन्हीं सब उजबकों के नाम लिख गए थे ??
अभी कल एक फेसबुकिया स्वयम्भू विद्वान बकवास कर रहा था की गुवाहाटी में जो कुछ हुआ उसमे सारी गलती लड़की की थी क्योकि उसने कम कपडे पहन रखे थे और देर रात की पार्टी अटैंड कर के लौट रही थी ,, भगवान राम/कृष्ण जी ने भी सूपर्णखा और ताडका का वध किया था ! तो क्या यह अश्लील तुच्छ कार्य करने वाले इन उजबको के अनुसार भगवान् राम/कृष्ण के अवतार है ??
गाँवों में चुड़ैल बताकर मार डाली जाने वाली औरतें, मानसिक रोगों से ग्रस्त,मातों-जागरातों में सिर पटककर झूलने वाली औरतें, वृंदावन/बनारस में आलुओं की तरह ठुंसी विधवाएं, दंगों-पंगों में रोज़ाना बलत्कृत होती औरतें.... अभी कल के समाचार के अनुसार सफ़दर जंग अस्पताल में गर्भवती महिला के साथ बलात्कार ...... इन सबको देखकर इन्हें अपनी संस्कृति पर ज़रा भी शर्म नहीं आती ?? _____________________ किरण ...शाम ८:२६ ..... १५/७/२०१२
पत्नी पर शक होने पर या शक सही होने पर क्या पति को उसे मार डालने या या घर से निकालने का हक़ है ? क्या यह नैतिक और व्यवहारिक हल है ?? रामायण के राम ने भी ऐसा किया था .... जिस पत्नी को उनके 14 साल साथ रहने के बाद भी बच्चे नही हुए , उसके लंका से लौटने पर गर्भवती होने पर चुपचाप घर निकला देकर एक गलत उदाहरण दे दिया ..... !! अफ़सोस तो यह है की यह उदाहरण करोडो बार सुनाया जाता है और लाखो औरते इसकी शिकार होती है !! पत्नी पर शक होने पर उसे घर से निकाल देना या मारने की सोच लेना मर्दानगी नही बल्कि बेवकूफी की बात है ! दिल्ली की एक अदालत ने एक पति को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई है , जिसे अपने पत्नी के साथ हुए दुराचार के चलते गुस्सा आया और उसने सरेआम घर वालो के सामने उस अभागिन पीड़ित पत्नी की पीट-पीटकर ह्त्या कर डाली !! अब क्या पति के दिल को शान्ति मिल पाएगी ? क्या रामायण के राम चन्द्र जी को कभी शान्ति मिल पाई ? क्या उनके बच्चे कभी सामान्य जीवन जी सकेंगे / जी पाए ??
आखिर ऐसा क्यूँ होता है की आज भी हर पुरुष पत्नी के रूप में सीता जैसी स्त्री ही चाहता है , ताकि उसके हर उचित-अनुचित बातो को पत्नी मूक-बधिर होकर मशीन की तरह मानती जाए ! आखिर क्यूँ पति के अलावा किसी और से संबंध/दुराचार की शिकार होते ही स्त्री दूषित हो जाती है ??? मजेदार बात तो यह है की पुरुष दूषित स्त्रियों के साथ सोता रहे तो वह सिर्फ बेईमानी कर रहा है अपराध नही !!!!
कुछ दिनों पहले की बात है .... मैं , मेरी दो आंटी और उनके बच्चे के साथ मेरा माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ !
हमने बाणगंगा से 'अर्धक्वाँरी' जाने के लिए घोड़े लिए .... घोड़े वाले भी भक्तो की भारी भीड़ देखते हुए मनमाने पैसे ले रहे थे .... खैर, ३००० रुपये में ४ घोड़े तय हुए ..... मेरा घोड़ा सबसे आगे था ... लगभग १ किलोमीटर आगे चलने के बाद घोड़े वाले मेरा पर्स मुझे थमाया ... मैं अचंभित हो गई , मुझे पता ही नही चला की मेरा पर्स घोड़े पर चढ़ते वक्त मेरे जींस की जेब से कब गिर गया ..मेरे पर्स में लगभग ८००० रूपए थे ..... मैं उसकी इमानदारी से गदगद हो गयी ....उसका नाम रसीद था .... रास्ते भर मैंने उसे लेज , कॉफ़ी..इत्यादि उसे खिलाया-पिलाया ... घोड़े से उतरने के बाद जब मैं जब उसे उसकी ईमानदारी के लिए ५०० रूपए दे रही थी , मेरी आंटी ने इस एक्स्ट्रा पैसे देने का कारण पूछा ... मैंने तुरंत उसकी ईमानदारी के बारे में बताया .... तब आंटी ने बताया की उन्होंने मेरे जेब से पर्स को गिरते हुए और घोड़े वाले को मेरा पर्स उठाते हुए देख लिया था .... घोड़े वाले ने जैसे ही मेरा पर्स खोला आंटीने से उसे डांट दिया था कि " ए भैया , बिटिया का पर्स क्यूँ खोल रहे हो ?... उसे वापस करो .... फिर उसने तुझे वापस किया " यह सुनकर मैंने घोड़े वाले की तरफ देखा , उसके चेहरे का रंग उड़ा था .. जैसे की उसकी चोरी पकड़ी गई हो .. और वह कुछ भी कहने की हालत में नही था !
'अर्धक्वाँरी ' दर्शन का टिकट जो की ४० घंटे बाद का मिल रहा था ,लेने के पश्चात वहाँ के प्रांगण में मैंने देखा के एक अधेड़ उम्र के अंकल जी अपनी पत्नी के नाम की चालीसा जोर-जोर से पढ़ रहे थे ... बच्चे भी मुंह लटका कर माँ के पास खड़े थे ... अचानक अंकल जी ने जोश में आकर आंटी जी को धक्का दे दिया .... मैंने आंटी को थामा, उन्हें बैठाने की कोशिश की , किन्तु वह सार्वजनिक अपमान की वजह से फफकफफककर रोने लगी , बच्चे अपनी माँ को शांत कराने लगे .... और अंकल जी अब भी गलियाँ दे रहे थे .... मैंने उनके पास जाकर धीरे से कहा की "तुम्हारी इस हरकत के लिए पुलिस को बुलाऊं क्या " अंकल जी वहाँ से तुरंत अंतर्धयान हो गए !
माता के भवन पर माँ का दर्शन धक्कम-धुक्की के बावजूद बहुत अच्छी तरह से हुआ ...VIP लोगो को सिर्फ २५ मीटर की दूरी तय करनी होती थी .... और हमारे जैसे आम लोगो को १ किलोमीटर लम्बी लाइन में लगना पडा .....! जितनी भीड़ माँ के दर्शनों के लिए थी उससे कही ज्यादा खाने-पीने के स्टाल और होटलों में थे .... चटपटे भोजन का स्वाद तारीफ़-और कमियां गिना कर भी लिया जा रहा था ... और कूड़े-कबाड़े से गंदगी फैलाने में उस भक्ति स्थल में भी कोई कमी नही छोड़ी गई थी ! यहाँ भक्ति भावना कम ... -हाँ ,पिकनिक स्पौट ज्यादा समझ में आता है ! करोड़ों के दान के बावजूद भी सुविधाए निम्न दर्जे की है !
भवन से दर्शन के पश्चात हम लोगों ने फिर घोडा किया- भैरो जी का दर्शन करके अर्धक्वाँरी तक के लिए ..... यहाँ भी ४ घोड़े ३००० में तय हुए ..... यहाँ मेरे घोड़े मालिक का नाम उत्तम था .. थोडा ही आगे बढे थे की उत्तम ने टैक्स देने के नाम पर २००० रूपए मांगे ..... मैं १५०० दे रही थी ... किन्तु वह अड़ा रहा .. आंटी ने उसे पैसे तो दे दिए किन्तु उत्तम मुझसे बुरी तरह चिढ गया .... भैरो जी के दर्शन के पश्चात् मुझे डराने के लिए उसने मेरा घोडा सबसे आगे बढाकर उसे बिकुडा कहकर उसकी पूंछ खींचकर भगा दिया .... किन्तु उसे नही मालूम था की मैं भी घुड़सवारी में पारंगत हूँ ..... मैंने तुरंत उस घोड़े की लगाम जो की बंधी हुई थी , उसे खोली और घोड़े को और भी तेज़ दौड़ा दिया ... अब पीछे वाले घोड़ो को सम्हालना मुश्किल हो गया और घोड़े मालिक की हालत खराब हो गई .... वह बिखुडा-इकडे-लिकुडा चिल्लाते एकदम पीछे दौड़ पडा ... फिर सीढियों से भी दौड़ते हुए उतरा ... मैंने भी घोड़े को अर्धक्वाँरी पर ही जाकर रोका .... उस दुष्ट को जमकर अपने पीछे दौड़ाया क्योकि मेरी जगह कोई भी होता तो उसकी इस हरकत से कुछ भी हादसा हो सकता था ! उसने गुस्से से मेरी और देखा .... मैंने भी उसे ऑंखें तरेर कर देखा .... बोला कोई भी कुछ नही .... उसने बाकी बचे पैसो के लिए और मैंने अपने परिजनों के लिए इंतज़ार किया !
भवन पर ही मैंने खाना लेते वक्त देखा की एक बुजुर्ग ने अपनी पत्नी के पीठ पर जोर से घूंसा मारा ..... रास्ते में कई पति-पत्नी लड़ते-झगड़ते देखे गए ... वही नव-विवाहितो में रोमांस भी खुलेआम देखने को मिला ..... यह कैसी श्रधा-भक्ति है , मुझे समझ में नही आई ... घोड़े वालो ने लूट मचा रखा है और उनके मन का न होने पर भक्तो के साथ कोई हादसा करने में भी पीछे नही हटते ! माता का दरबार भक्ति स्थल कम और पिकनिक स्पोट ज्यादा नज़र आता है ...... सच्चे श्रधालुओ और गरीब भक्त जो की घोड़े /हेलिकोप्टर का पैसा नही दे सकते उनके हिस्से में सड़क १/४ हिस्सा ही आता है ३/४ हिस्से को तो घोड़े वाले ही कब्जा कर लेते है ..... और कभी -कभी तो भक्तो के बीच इन घोड़ो की वजह से डर के मारे भगदड़ भी मच जाती है !
मैं यह संस्मरण आपसे साँझा कर रही हूँ...मित्रों ...बस इतना बताने के लिए कि भक्ति दिल से होनी चाहिए ,मन में श्रद्धा लेकर ही तीर्थयात्रा करें और वैष्णोदेवी तीर्थस्थल में इन घोडेवालों से भी सावधान रहें..साथ ही तीर्थस्थल पर गन्दगी न फैलाएं ,पवित्र तीर्थस्थल को पिकनिक स्पौट में न बदलें.....!!! जय माता दी !!!
लगभग १२ वर्ष के लम्बे इंतज़ार के बाद आज मेरी बचपन की एक सहेली शबनम से फोन पर बात हुई .... उसका विवाह इंटर मिडियट के एक्जाम से पहले ही अलीगढ में एक व्यवसाई पुरुष के साथ हो गया था मात्र ५००० के मेहर पर ....उसके अब्बू बैंक में मैनेजर है .. वह पढने में काफी ज़हीन थी और सपने बेहद ऊँचे थे .... इस समय वह ८ मे से ५ जीवित बच्चो की माँ है .....मैंने काफी कोशिश की थी उससे मुलाकात की लेकिन कभी वह नही कभी मैं नही ..... हाँ हाल-चाल जरुर मिलते रहते थे की वह काफी धनवान घर में ब्याही है और सुख से है ! लेकिन उससे बात करने पर आज पता चला की वह आसमान से तोड़कर पिंजरे में कैद कर दी गई है .... नए ज़माने की यह दुल्हम ५ बच्चो की माँ होने के बावजूद भी पिंजरे में कैद है ..... सारे सपने को वह भूल चुकी है ! उसका और उसके परिवार की स्त्रियों का अब सिर्फ यही काम है की वह बच्चो की देखभाल करे ..... नौकरों के साथ मिलकर घर को सजाये-संवारे और पति -बच्चो एवं देवरों के मनमाफिक बढ़िया-बढ़िया खाना बनवाए .... हमेशा सजी-संवरी रह कर अपने पति का इंतज़ार करे ! वह बाहरी दुनिया से पूरी तरह तरह कटी हुयी है ... मेरा सन्देश तो हर बार उसे मिलता था किन्तु वह बात कर पाने में असमर्थ है .... क्योकि उसके पिताजी के घर पर भी कोई न कोई देवर उसपर निगाह रखे ही रहता था .... उन्हें उसका हिन्दू लड़कियों से बातचीत करना बिलकुल भी पसंद नही ! ससुराल में आसमान के नाम पर शबनम को सिर्फ घर के बाड़े का सिर्फ छोटा -सा एक हिस्सा ही दिखाई देता है .... यहाँ घर की दीवारे काफी ऊंची है .. और यहाँ ससुर और देवरों केअलावा कोई मर्द दाखिल नही हो सकता ! वह इस जिंदगी की आदी होकर जनानखाने का एक अंग बन चुकी है .... जहां की मर्द हर मायने में राजा होता है और औरत उसकी बाँदी ..... वह अपने सारे सपने भूल चुकी है ... खुश है अपनी जिंदगी में .! और यह भी की उसके पति और देवर फेसबुक पर मेरे फालोवर है ,किन्तु उसे फेसबुक यूज करने की इजाजत नही ..... मेरी और उसकी मित्रता के बारे में उन्हें वह बता चुकी है .....मुझे बेहद पसंद करने वाले वह पुरुष मेरे विचारो को पसंद नही करते ....उसका खुद भी बहुत दिल चाहता है मुझसे बात करने के लिए किन्तु मैं खुद से कभी उसको कभी फोन न करूँ .... जब वह सही समय समझेगी तो मुझे खुद कॉल कर लेगी !
(शबनम , अगर तुम तक मेरा यह सन्देश पहुँच रहा है तो मैंने तुम्हारे पति एवं तीनो देवरों को और तुम्हारे उस भतीजे को भी ब्लोक कर दिया है ..... मुझे तुम्हारे कॉल का हमेशा इंतज़ार रहेगा )
आज फेसबुक के होमपेज पर घुमते -घुमते एक जगह नज़र पड़ी ... वहाँ पर ताजमहल की खूबसूरती ... शाहजहाँ के प्रेम की पावनता और भी न जाने क्या -क्या उसके प्रेम-प्यार सम्मान में कसीदे पढ़े गए थे !
लोगो को भले ही ताजमहल प्रेम का प्रतीक लगे तो लगे .... वो विश्व धरोहर हो तो हो .... अगर उसे सच में शाहजहाँ ने बनवाया है तो मुझे ताजमहल में अच्छा लगने लायक कुछ भी नही लगा ....उसको देखते ही उसके शफ्फाक पत्थरों पर जाने कितने ही इंसानों के खून के छींटे दिखते है ..... जाने कितने ही मासूम मजदूरों की कराहे दिखती है ..... इस इमारत के पीछे एक शासक का वहसीपन दिखता है ...! और अगर , जैसा की आजकल विवाद चल रहा है की यह इमारत नही तेजोमहल मंदिर था जो की राजपूत राजाओ द्वारा बनवाया गया था , जिसे की शाहजहाँ ने कब्ज़ा कर लिया और उसे हेर-फेर करके ताजमहल का नाम दे दिया तब तो उस मुहब्बत की कहानी गई तेल लेने ... पहले सच्चाई का तो पता चले ! (हिन्दू मंदिरों को अपवित्र करने और उन्हें ध्वस्त करने की प्रथा ने शाहजहाँ के काल में एक व्यवस्थित रूप धारण कर लिया था ! मध्यकालीन भारत - हरीश्चंद्र वर्मा - पेज-१४१)
सवाल यह भी है की जिस शासक के प्रेम के इतने कसीदे पढ़े जाते है की उसने मरने के बाद अपनी मुहब्बत की याद में लोगो के हाथ काट-काट कर क्या कमाल की इमारत बनवाई है , क्या उसने जीते जी मुमताज को एक पत्नी का हक दिया भी था ?
मुमताज की मौत चौदहवे बच्चे को जन्म देते समय अत्यन्त कमजोरी की वज़ह से हुई थी, इसी से पता चलता है कि शाहजहाँ को उससे कितनी मुहब्बत रही होगी कि उसे बच्चे पैदा कराने की मशीन ही नही बल्कि पूरी फैक्ट्री ही बना डाला था !
शाहजहाँ मुमताज से ऐसा बे- इंतहा मुहब्बत करता था कि उसके हरम में तीन सौ एक्स्ट्रा बीवीया उसके गुलछर्रे उड़ाने के लिए रहा रहती थी ! एक कामुक बादशाह किसी एक पत्नी को इतना ही प्यार करता था तो उसे उसी से ही सम्बन्ध रखने चाहिये थे, एक्स्ट्रा तीन सौ बीविया किस काम के लिये थी ???
और तो और बेमिशाल पावन चरित्र के धनी शाहजहाँ के उसकी सगी बड़ी बेटी जहांआरा से भी उसके नाजायज रिश्ते थे ! जब इस बाप-बेटी के अवैध रिश्तो के चर्चे आम हुए तो मुल्लो की एक बैठक बुलाई गई , जिन्होंने एक हदीस का सहारा लेते हुए कहा की माली को अपने पेड़ का फल खाने का पूरा हक़ है ... ! (Francois Bernier wrote, " Shah Jahan used to have regular sex with his eldest daughter Jahan Ara. To defend himself, Shah Jahan used to say that, it was the privilege of a planter to taste the fruit of the tree he had planted." According to Peter Mundy, another European traveler, Shah Jahan had illicit sexual relation with his younger daughter Chamni Brgum.)
74 साल की उम्र में जब उसे उसी के बेटे औरंगजेब ने आगरा के किले मैं कैद कर दिया था, और तब भी उसे 40 जवान लड़कियाँ ( शाही वेश्याए ) रखने की इजाजत दे रखी थी !
मेरी आस्था " गाय '' में है, "गाय" कोई जानवर नहीं है , वो धर्म है , ये एक लाभदायक धर्म है इसके अंतर्गत निन्म गुण है ______ 1- ये पुरुषवादी धर्म नहीं है ये नारीवादी धर्म है ! 2- ये अकेला ऐसा धर्म है जो दूध देता है और इसके मूत्र -गोबर के इस्तेमाल से बाबा रामदेव जैसे राजनेता \ धर्मनिष्ट\व्यापारी \अर्धनारीश्वर पैदा होते हैं ! 3-कुछ धर्म जो आवारा सडको पर फिरता है उसकी रक्षा के लिए आश्रम बनाये जाते हैं चंदा लिया जाता है जिससे कई प्रकार के वो पैदा होते हैं ,, वो आश्रम वालो को क्या बोलते हैं ?
अब इसकी कमजोरी _____ 1- जो धर्म आवारा फिरता है वो अक्सर प्लास्टिक खाकर पेट कि बीमारियों से मर जाता है ! 2- इस धर्म कि अक्सर सड़क दुर्घटनाओं में असमय मृत्यु या अपाहिज होने का खतरा बना रहता है ! 3- इस धर्म को एक सम्प्रदाय विशेष के लोग चाव से खा जाते हैं ! :'( .....रोना भी आगया ...:'(
___________________________________________________________ इस धर्म का एक जंगली संस्करण भी होता है जो नीलगाय कहा जाता है वो अक्सर किसानो कि फसलों को बर्बाद कर देता है,,वो पीछे से गधे के जेसा और आगे से घोड़े के जैसा होता है ! वो धर्म का रंग नीला नहीं होता है ,, शेष फिर कभी .......................
नोट- इस धर्म में हमारी आस्था है कृपया हमारी आस्था को ठेस न लगाये !!!
आज दिल्ली की एक खबर आँखों के सामने से गुजरी .... पति को शक था की पत्नी का किसी दुसरे युवक से सम्बन्ध है और इसी शक के चलते घर में अक्सर कलह हुआ करता था ! एक दिन झगडे के बाद पत्नी ने आत्महत्या कर ली ..... पति इस डर से की अब उसे पूरा जीवन जेल में गुजरना पड़ेगा इसलिए उसने भी उसी साडी से लटककर आत्महत्या कर ली !
सोचने की बात तो ये है की अब बच्चो का क्या होगा ?? पत्नी जिस अहम् में थी की वह आत्महत्या के बाद पति को औकात में ला देगी , वह तो हो न सका .... किन्तु बेकसूर बच्चे जिंदगी भर की सज़ा पा गए !
मुझे आज तक समझ नही आया की ज़हर खा कर मर जाउंगी , आग लगा लूंगी ऐसा धौंस देकर क्या दिखाना चाहती है स्त्रिया ? क्या ये ब्लैकमेलिंग है या हताशा या फिर हमारी कमजोरी ?? किन्तु जिस देश में सती हो जाने को , जमीन में समा जाने को , भूख हड़ताल करके ब्लैकमेल करने को महान समझा जाता है , उस देश में ऐसी सोच होना विचित्र भी नही है !!
हम स्त्रिया अभी तक यह क्यों नही समझ पाई की हमारा जीवन अपने आप में बेशकीमती है ..... हमारी भी घर-समाज में उपयोगिता है ! अगर पति के किसी दूसरी स्त्री से सम्बन्ध है , या पति हम पर शक करता है या पति अपने परिवार वालो की सुनता है तो इसमें हमारे मरने की बात क्यों ? समस्या सुलझ नही सकती तो क्यों न अलग रहा जाए .... ? किन्तु स्त्रिया ऐसा न करके धमकियों के सहारे अपने पति को ही काबू में रखना चाहती है , और यही समस्या की जड़ भी है !
स्त्रियों की इस सोच के पीछे समाज का भी कम योगदान नही ... स्त्री के घर-समाज में उपयोगी होने को समाज स्वीकार करने में हिचकिचाता है ... उसे सिर्फ घर के अन्दर रखकर उसमे हीनभावना भर दी गई ... ऊपर से कानून ने भय निकालकर आत्मविश्वास भरने की बजाय उसे ब्लैकमेल करने का हथियार पकड़ा दिया ! भयावह नतीजे अब सामने है ..... हज़ारो परिवार कलप रहे है .... बुजुर्ग स्त्री -पुरुष सही/गलत मुकदमो में जेल के अन्दर सड़ रहे है !