
तुम्हे, मेरा दुसरे मर्दों के साथ,
हँसना और बोलना पसंद नहीं है,-
ये समझकर कि मैं तुम्हारी गैर मौजूदगी में,
आवारा घूमती-फिरती हूँ,
तुम अंदर ही अंदर सुलगते रहते हो......
तुम अपने आपको यंत्रणा देते हो, ये सोचकर-
कि मैं तुम्हारे जानने वालो,
और अपने जनने वालो,
और दुसरे तमाम लोगो के साथ,
तुम्हारे खिलाफ बाते किया करती हूँ.....
तुम्हे इस वहम ने पागल कर रखा है-
कि मैं दूसरे मर्दों के साथ जाने क्या-क्या करती हूँ,
महज़ इस ख़याल से -
कि घर वापस आकर तुम्हें न जाने,
किस तरह का मंज़र देखना पड़े ,
तुम्हारे होश गुम हो जाते हैं .......
मेरे साथ रहते हुए, तुम्हारी जिंदगी हजारो -
आशंकाओ में घिरी हुयी हैं,
लेकिन, तुम इतने बुजदिल हो,
कि मेरे बगैर जिंदा भी नहीं रह सकते,
और तुममे इतनी योग्यता भी नही हैं -
कि शादी-शुदा जिन्दगी के योग्य हो सको!!!!!!
great
ReplyDeleteonly single word great composition.........
ReplyDeleteकिरण ,
ReplyDeleteमैं कोई कवि नही किन्तु हिंदी साहित्य से एक लगाव है , इसलिए आपकी कविता के सापेक्ष यह पंक्तिया उदृत कर रहा हूँ जो मृदुल कीर्ति जी की लिखी है , कृपया स्वीकार करे.
अपने को नष्ट कर
तादात्म्य के क्षणों में,
सृजन का बीज बोटी है.
दूसरों के लिए जीने मरने के सिद्धांत को व्यवहार करती है.
यह कोई सर्व सिद्धान्त बात नहीं, आप की अपनी हो सकती है।
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