
हवाओं में ये कैसी सिहरन,
धरती से उठी कैसी भीनी सुगंध !
फिज़ाओं में ये कैसा जादू ,
मन में उठने लगा है ज़ज्बात !
शुष्क धरती के होठों की प्यास बुझाती,
मौसम की ये पहली बरसात !
पहली बारिस की मधुर नाद में,
आद्र हों उठा है मन !
ह्रदय वीणा के मौनबद्ध तार को ,
झनझना देते हैं बार - बार !
हवाएं सरगोशी से कुछ कहने सी लगी है ,
ये कैसा नशा है.... कैसा है ये जादू !.....
क्यों धड़कता दिल, हो रहा है बेकाबू !
सांसे थाम कर बैठे हैं हम ,
ये दिल थामकर बैठे हैं हम!
अब तो कह दो, ..कह दो ...
क्यों हों तुम ऐसे,
कि तुम्हे सजदा करने को बैठे है हम ...!!