_____________________आखिर कब तक____________________
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भारत की राजनितिक पार्टियों का वोट की राजनीति की खातिर लोकतंत्र का मजाक बनाने का एक लंबा इतिहास रहा है और इसमें सभी दल एक जैसे ही हैं कोई नंदीग्राम में सना है कोई दिल्ली के सिख दंगो में तो कोई गुजरात और अयोध्या में .. न महारष्ट्र में कोई साफ़ है न दक्षिण भारत में ... पहले प्रदर्शन और विरोध का आतंक एक बड़े स्तर पर पर होता था मगर आज हालत बदल गए हैं !
कहा जाता है अपराध से घृणा करो अपराधी से नहीं, और उस परिस्थिति में जहाँ अपराधी अपराध की सजा पा ले वहा वह सामन्य जीवन का अधिकारी होता है---- बात हो रही है नीरज ग्रोवर हत्याकांड में सजा पा चुकी मरिया की .. जो अब अपने जीवन को सामन्य जीने के लिए संघर्षशील है !
लेकिन अब उसको सामने जीवन जीने का अधिकार नहीं दिया जायेगा ये कहना है इस ज़माने के नए खुदाओ का .......
आज सवाल उठता है की राजनितिक पार्टियां संविधान और न्यायव्यवस्था से ऊपर है ? हर बात को वोट की राजनीति से जोड़कर लोगो को आतंकित करना इन खुदाओं का नया चलन है यहाँ सवाल ये नहीं की मारिया का गुनाह कितना बड़ा या छोटा था निसंदेह मारिया ने बुरा कार्य किया और सजा पायी लेकिन जब वो न्यायालय द्वारा सजा पा चुकी है तो क्यों उसको सामन्य जीवन न जीने के लिए आतंकित किया जा रहा है ..?
मात्र राम गोपाल वर्मा द्वरा उसकी कहानी पर फिल्म बनाने की घोषणा से जिस प्रकार भारत के एक राजनितिक दल ने प्रदर्शन किया है और जंगलराज की स्थिति पैदा की है सवाल उठता है क्या ये अपराध नहीं है ?
इस देश में न्याय और व्यवस्था के प्रहरी ही जब न्याय का निरादर करते हैं और वो भी इतने बुरे प्रतिक्र्यात्मक तरीके से ..व्यक्ति विशेष के खिलाफ प्रदर्शन करते हैं तो आखिर क्या समझा जाये वो जनता को क्या सन्देश देना चाहते हैं की अब वही सबसे बड़े न्यायालय बन चुके हैं और देश में जंगलराज आ चुका है अगर उन खुदाओं की नहीं मानी गयी तो तोड़ फोड होगी धमकियाँ मिलेगी , शायद जान से भी मारा जा सकता है !
इस देश में जबकि सरकार निरंतर भ्रष्टाचार में लिप्त थी तब तो मुख्य विपक्षी दल उससे बहस करने उसे घेरने की बजाय संसद नहीं चलने देकर उसकी मदद ही कर रहे थे .. आज व्यक्ति विशेष के खिलाफ कितने उर्जावान हैं !
आज हमारे सामने सबसे बड़ा सवाल है की राजनितिक दलो का कोई नैतिक आचरण होगा भी या नहीं होगा ... सवाल मारिया का नहीं है क्योंकि चार दिन में ये भी खत्म हो जायेगा .. सवाल है की आखिर कब तक हम इस जंगलराज और वोट के राजनितिक तमाशो के मूकदर्शक बनकर सहते रहेंगे !
सवाल बीजेपी कांग्रेस बसपा समाजवादी वामपंथी या अन्य दलों की विचारधारा के समर्थन या विरोध का नहीं है क्योंकि एक विशेष परिस्थिति में सभी दल एक जेसा ही व्यवहार करते हैं .. यहाँ सवाल है की ▬▬▬ "कब तक नए ज़माने के ये खुदा न्याय और व्यवस्था का मजाक बनाते रहेंगे ...कब तक न्याय की देवी यूँ ही आँखों पर पट्टी बांधे रखेगी ??"
सवाल तो न्याय और व्यवस्था के प्रति इनकी टूटी हुई आस्था का है !
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