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Tuesday, December 22, 2015

परिसीमा !!

जब भी मैं शाम को उस तरफ टहलने के लिए जाती  वह  गोरी अमेरिकन अपने कुत्तो के साथ अक्सर दिख जाया करती थी, अपनी छोटी सी बगिया को सवांरती बनाती हुई। उम्र लगभग ४५-५० के आस-पास ही होगी। एक दिन मैंने रुककर कर उसके गार्डन में लगे हुए तरह-तरह के पौधों के बारे में पूछ ही लिया। फिर तो ढेर सारी बाते हुई।  १५-२० मिनट मुलाकात में ही ऐसा लगा जैसे हम एक दूसरे को जाने कब से जानते है। बहुत अल्हड़ता थी उसमे।  वो एक चंचल नदी सी बह रही थी और मैं भी उसी बहाव के साथ उसका साथ दे रही थी। नाम-पते का आदान-प्रदान हुआ, और मैं आगे बढ़ गई। जब वापस लौटी वो मेरे लिए सुन्दर सा गुलदस्ता तैयार करके रखी थी।  मैं बहुत खुश हुई।
फिर तो अक्सर ही ऐसा होने लगा , मेरा शाम को टहलते समय  कुछ देर का उसका साथ मुझे ताजगी दे जाता।  मैं बाते करते समय उसके गोरे चेहरे पर खिलते हुए इंद्रधनुषी रंगो को देखती रह जाती।
सर्दिया शुरू हो गई थी , दिन छोटे होने लगे और हम अपने घर के आस-पास ही सिमट गए। लगभग एक साल के बाद फिर से उधर जाना हुआ।  वो बगिया वही थी, कुछ पौधे भी थे उदास उदास से, वो बात नही दिख रही थी। फिर २-३ बार और गई वो नही मिली। अब मुझे अजीब सा लगने लगा था।
बाजार में वापस आते हुए फिर एक दिन वहाँ  गई और डरते-डरते डोरबेल बजा दिया। वो निकली , उसने मुझे देखा , अपनी  बड़ी सी पलकों को २-३ बार झपकाया जैसे उसे यकीन ही न आ रहा हो कि हम उससे मिलने आये है। उसने  मुझे आत्मीयता से गले लगा लिया।  मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ था।  मुझे भी यकीन नही हो रहा था कि ऐसा कैसे हो गया? यह मेरे सामने जो है, यह वो तो नही है। उसकी आवाज़ में लड़खड़ाहट थी, जुबान-चेहरा-आवाज कोई भी एक दूसरे का  साथ नही दे रहा था।  मैंने पूछा, कैसे हुआ ये सब ? उसने घुटने पर ऑपरेशन के निशान दिखाए। बोली वो बीमार थी बहुत, उसने हमें बहुत मिस किया , जब भी वो हमारे अपार्टमेंट की तरफ से निकलती थी-वह हमें ढूढ़ने की कोशिश करती थी। आँखों में आंसू के साथ उसकी जीवंतता बरकरार थी। शायद  बहुत कुछ घट गया था इस बीच जो उसने हमें नही बताया।  हमने भी उसकी निजता का ख़याल रखते हुए सारी बाते जानने के लिए  ज्यादा जोर नही दिया।  उसके परिवार में कौन-कौन है हम नही जानते, कभी-कभार एक मित्र के अलावा हमने किसी को नही देखा वहा। वह खुश होकर अपनी बगिया से कुछ फल देने चाहे, हमें कोफ़ी के लिए आमंत्रित किया किन्तु उसकी हालत देखते हुए हमारा मन नही हुआ और हमने प्यार से मना कर दिया । हम उसे अपने अपनी कार में से  कुछ स्नेक्स देकर भरे मन से वापस आ गए और अभी तक दुबारा नही जा पाये।
बहुत कुछ करना चाहती थी उसके लिए लेकिन मैं एक प्रवासी चाहूँ भी तो अपनी सिमित आय और सिमित साधनो के साथ कर भी क्या सकती हूँ भला ?

Wednesday, December 16, 2015

Autumn !!

मैं आजकल पेड़ो को देखती हूँ --- अपनी शाखों से जुड़े तमाम पत्तो को बेरहमी से अपने से दूर फेंकते हुए और अगर गलती से कोई एक ढीठ पत्ता किसी एक अनजानी सी कमजोर शाख पर अपने रिश्ते को सम्हालते हुए बचा भी रह जाता है तो प्रजिन का कोई एक लापरवाह झोंका उसके लिए क़यामत बनकर आता है और उसे उस डाली से नोचकर पेड़ से कहीं दूर फेंक देता है।
कल तक शान से इतराने वाले सारे पत्ते बिखर जाते है ,अपनों से दूर न जाने कहाँ जाकर मिटटी में मिल जाते है , उनका कहीं नामो निशान तक नही बचता। 
किन्तु पेड़ .... कुछ ही समय के अन्दर नए साथी पत्तो के साथ वह पुष्पित -पल्लवित होकर और भी निखर जाता है। भूल जाता है कि उसे पेड़ बनाने वाले पत्तो से साथ उसने क्या किया।
___________ Kiran Srivastava © (मेरी किताब 'प्रवासी' से )
photo from my camera !!
______________________________________________
Recently I have been watching trees-- continuosly shedding their leaves from branches, disowning , seperating and throwing far away their own organs very heartlessly. If any obstinate and insolent little leaf, trying to maintain, sustain and uphold its relationship to its origin, is inadvertently left attached to a tiny hidden delicate stalk, it has to face apocalyps of a reckless spate of wind-attack which throws it away snatching from its supportive twig.The leaves which were swaggering with pride till yesterday are now scattered far from their origin to reach its ultimate end where no trace remains.
But in a short span of time the tree... is again in bloom with enhanced glow and luster, ladden with newly sprouted tender colourful buds,flowers and leaves as they are its new companions. It has now no memory what it had done with its own leaves by virtue of which it gets the name " Tree ".______ Kiran Srivastava©
_____________From my book "The Emigrant" 

Monday, December 14, 2015

खानाबदोश !!

खानाबदोश की तरह हो गई है जिंदगी मेरी ,जिस जगह रुक जाऊ बस वही बसेरा। 
न कोई घर , न मकान , न ही कोई आत्मीय जन। 
ठहरती, रूकती , चलती रहती हूँ मैं।
जगह-जगह यादे छोड़ आती हूँ , ले आती हूँ वहाँ की यादे। 
कभी किसी नदी के किनारे रेत सी बिछ जाती हूँ , तो किसी धरती पर मिट्टी की तरह बिखर जाती हूँ। 
इस निसंग आकाश में भी तो मेरी आँखों का सूनापन ही दिखता है। 
क्या पता की मेरे आज का कल क्या होगा। 
मिल जाउंगी मिट्टी में या गुम हो जाउंगी सितारों में ...... 

इन करोड़ों अरबो प्रवासियों में आखिर मैं कौन हूँ , क्या हूँ ,

समुन्दर में एक नन्ही पानी की बूंद या किनारे पड़ी रेत की एक कण ?
_______ kiran !


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Sunday, December 13, 2015

ततैया !

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आज सुबह की बात है , मैं अभी पढ़ने ही बैठी थी कि मैंने देखा मेरे स्टडी टेबल पर एक नन्हा ततैया (बर्र,बर्रैया / पीली हाड़ी/wasp) उड़ने की कोशिश में इधर-उधर बैठ रहा था। मैं डर गई , कहीं मुझे काट न ले। (एक बार बचपन में काटा था , बहुत दर्द हुआ था और ३-४ दिन तक पूरा हाथ सूजा था।) मैं उसे मारना नही चाहती थी। किताब से हटाने की कोशिश की तो वो और नजदीक आ गया। अब मुझे उसको लेकर टेंशन हो गया। फिर मैंने अपने पानी के बोतल का पूरा पानी पीकर उस बोतल को ततैया  के पास लगाया , ततैया अंदर चला गया। मैंने भी बोतल में ढक्कन लगाकर बंद किया और उसे भूल गई। करीब २ घंटे के बाद अचानक बोतल पर निगाह पड़ी तो मैंने देखा , वह नन्हा सा ततैया का बच्चा निकलने के लिए परेशान है। कभी वह अपने नन्हे कदमो से बोतल के तले की तरफ जाता तो कभी ढक्कन की तरफ। मुझे उसकी बेचैनी नही देखी जा रही थी। मुझे लगा की कभी मैं ऐसी स्थिति में फंस जाऊं तो क्या होगा। अब मैं इस कल्पना से और भी परेशान हो गई। 
मैं उस बंद बोतल को लेकर बालकनी में आई ,फिर बोतल को ठोंककर ततैया  को तले की तरफ किया और उसका ढक्कन खोलकर बाहर फेंक दिया। मैं रूम में आकर निश्चिन्त होकर सो गई। सर से एक बोझ उत्तर गया था। 

Sunday, July 15, 2012

कमाल की संस्कृति !

गुवाहाटी में मानवता को शर्मसार कर देने वाली घटना के बाद हिन्दू संस्कृति के स्वयंभू ठेकेदारों / पुरोधाओ ने बहुत सारे सुझाव दिए है/ सामने आये है-- जैसे की हम लडकियों को कितने मीटर कपड़ा पहिनने चाहिए ...... कितनी देर तक बाहर रहना चाहिए ..... किसी पार्टी में जाना चाहिए या नही ?
और अगर लड़की इनके द्वारा तय मानक अनुसार न करे तो क्या इन्हें लडकियों के साथ बदतमीजी/छेड़खानी/ घसीटने/सिगरेट से जलाने/बलात्कार करने का अधिकार मिल जाता है ??

मुझे यह समझ में नहीं आता कि ये कौन होते हैं यह तय करने वाले कि कौन क्या पहने क्या न पहने ? क्या ये अपनी धोती/लुंगी/हाफ पैंट /बारमुड़ा हमसे पूछ कर पहनते हैं , जिसको ज़रा सा खींच भर दी जाए तो सारी उतर कर नीचे आ पड़े ..... पहने-पहने भी जिसमें से आधी टांगे नंगी दिखती रहती हैं !!
स्त्रियों के लिए भी ऐसी ही कई अनसिली-अधखुली पोशाकों का प्रबंध हमारी संस्कृति में है.......लेकिन जब हम इनके पोशाकों पर आपत्ति नहीं करते तो इन्हें क्या अधिकार है कि सारे देश के स्त्रियों के लिए खाने-रहने-पहनने-नाचने-गाने का मैन्यू बनाएं ?
क्या हम सबके बाप-दादा देश की सारी स्त्रियों का पट्टा क्या इन्हीं सब उजबकों के नाम लिख गए थे ??

अभी कल एक फेसबुकिया स्वयम्भू विद्वान बकवास कर रहा था की गुवाहाटी में जो कुछ हुआ उसमे सारी गलती लड़की की थी क्योकि उसने कम कपडे पहन रखे थे और देर रात की पार्टी अटैंड कर के लौट रही थी ,, भगवान राम/कृष्ण जी ने भी सूपर्णखा और ताडका का वध किया था !
तो क्या यह अश्लील तुच्छ कार्य करने वाले इन उजबको के अनुसार भगवान् राम/कृष्ण के अवतार है ??

गाँवों में चुड़ैल बताकर मार डाली जाने वाली औरतें, मानसिक रोगों से ग्रस्त,मातों-जागरातों में सिर पटककर झूलने वाली औरतें, वृंदावन/बनारस में आलुओं की तरह ठुंसी विधवाएं, दंगों-पंगों में रोज़ाना बलत्कृत होती औरतें.... अभी कल के समाचार के अनुसार सफ़दर जंग अस्पताल में गर्भवती महिला के साथ बलात्कार ...... इन सबको देखकर इन्हें अपनी संस्कृति पर ज़रा भी शर्म नहीं आती ??
_____________________ किरण ...शाम ८:२६ ..... १५/७/२०१२

Thursday, July 12, 2012

आज भी होता है !!

पत्नी पर शक होने पर या शक सही होने पर क्या पति को उसे मार डालने या या घर से निकालने का हक़ है ? क्या यह नैतिक और व्यवहारिक हल है ??
रामायण के राम ने भी ऐसा किया था .... जिस पत्नी को उनके 14 साल साथ रहने के बाद भी बच्चे नही हुए , उसके लंका से लौटने पर गर्भवती होने पर चुपचाप घर निकला देकर एक गलत उदाहरण दे दिया ..... !!
अफ़सोस तो यह है की यह उदाहरण करोडो बार सुनाया जाता है और लाखो औरते इसकी शिकार होती है !!
पत्नी पर शक होने पर उसे घर से निकाल देना या मारने की सोच लेना मर्दानगी नही बल्कि बेवकूफी की बात है !
दिल्ली की एक अदालत ने एक पति को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई है , जिसे अपने पत्नी के साथ हुए दुराचार के चलते गुस्सा आया और उसने सरेआम घर वालो के सामने उस अभागिन पीड़ित पत्नी की पीट-पीटकर ह्त्या कर डाली !!
अब क्या पति के दिल को शान्ति मिल पाएगी ? क्या रामायण के राम चन्द्र जी को कभी शान्ति मिल पाई ? क्या उनके बच्चे कभी सामान्य जीवन जी सकेंगे / जी पाए ??

आखिर ऐसा क्यूँ होता है की आज भी हर पुरुष पत्नी के रूप में सीता जैसी स्त्री ही चाहता है , ताकि उसके हर उचित-अनुचित बातो को पत्नी मूक-बधिर होकर मशीन की तरह मानती जाए !
आखिर क्यूँ पति के अलावा किसी और से संबंध/दुराचार की शिकार होते ही स्त्री दूषित हो जाती है ???
मजेदार बात तो यह है की पुरुष दूषित स्त्रियों के साथ सोता रहे तो वह सिर्फ बेईमानी कर रहा है अपराध नही !!!!

_____________________ kiran srivastava 8:57 pm .. 12/7/2012

Saturday, June 2, 2012

माता वैष्णो देवी की यात्रा -वृत्तांत !!

कुछ दिनों पहले की बात है .... मैं , मेरी दो आंटी और उनके बच्चे के साथ मेरा माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ !

हमने बाणगंगा से 'अर्धक्वाँरी' जाने के लिए घोड़े लिए .... घोड़े वाले भी भक्तो की भारी भीड़ देखते हुए मनमाने पैसे ले रहे थे .... खैर, ३००० रुपये में ४ घोड़े तय हुए ..... मेरा घोड़ा सबसे आगे था ... लगभग १ किलोमीटर आगे चलने के बाद घोड़े वाले मेरा पर्स मुझे थमाया ... मैं अचंभित हो गई , मुझे पता ही नही चला की मेरा पर्स घोड़े पर चढ़ते वक्त मेरे जींस की जेब से कब गिर गया ..मेरे पर्स में लगभग ८००० रूपए थे ..... मैं उसकी इमानदारी से गदगद हो गयी ....उसका नाम रसीद था .... रास्ते भर मैंने उसे लेज , कॉफ़ी..इत्यादि उसे खिलाया-पिलाया ... घोड़े से उतरने के बाद जब मैं जब उसे उसकी ईमानदारी के लिए ५०० रूपए दे रही थी , मेरी आंटी ने इस एक्स्ट्रा पैसे देने का कारण पूछा ... मैंने तुरंत उसकी ईमानदारी के बारे में बताया .... तब आंटी ने बताया की उन्होंने मेरे जेब से पर्स को गिरते हुए और घोड़े वाले को मेरा पर्स उठाते हुए देख लिया था .... घोड़े वाले ने जैसे ही मेरा पर्स खोला आंटीने से उसे डांट दिया था कि " ए भैया , बिटिया का पर्स क्यूँ खोल रहे हो ?... उसे वापस करो .... फिर उसने तुझे वापस किया " यह सुनकर मैंने घोड़े वाले की तरफ देखा , उसके चेहरे का रंग उड़ा था .. जैसे की उसकी चोरी पकड़ी गई हो .. और वह कुछ भी कहने की हालत में नही था !

'अर्धक्वाँरी ' दर्शन का टिकट जो की ४० घंटे बाद का मिल रहा था ,लेने के पश्चात वहाँ के प्रांगण में मैंने देखा के एक अधेड़ उम्र के अंकल जी अपनी पत्नी के नाम की चालीसा जोर-जोर से पढ़ रहे थे ... बच्चे भी मुंह लटका कर माँ के पास खड़े थे ... अचानक अंकल जी ने जोश में आकर आंटी जी को धक्का दे दिया .... मैंने आंटी को थामा, उन्हें बैठाने की कोशिश की , किन्तु वह सार्वजनिक अपमान की वजह से फफकफफककर रोने लगी , बच्चे अपनी माँ को शांत कराने लगे .... और अंकल जी अब भी गलियाँ दे रहे थे .... मैंने उनके पास जाकर धीरे से कहा की "तुम्हारी इस हरकत के लिए पुलिस को बुलाऊं क्या " अंकल जी वहाँ से तुरंत अंतर्धयान हो गए !

माता के भवन पर माँ का दर्शन धक्कम-धुक्की के बावजूद बहुत अच्छी तरह से हुआ ...VIP लोगो को सिर्फ २५ मीटर की दूरी तय करनी होती थी .... और हमारे जैसे आम लोगो को १ किलोमीटर लम्बी लाइन में लगना पडा .....!
जितनी भीड़ माँ के दर्शनों के लिए थी उससे कही ज्यादा खाने-पीने के स्टाल और होटलों में थे .... चटपटे भोजन का स्वाद तारीफ़-और कमियां गिना कर भी लिया जा रहा था ... और कूड़े-कबाड़े से गंदगी फैलाने में उस भक्ति स्थल में भी कोई कमी नही छोड़ी गई थी !
यहाँ भक्ति भावना कम ... -हाँ ,पिकनिक स्पौट ज्यादा समझ में आता है !
करोड़ों के दान के बावजूद भी सुविधाए निम्न दर्जे की है !

भवन से दर्शन के पश्चात हम लोगों ने फिर घोडा किया- भैरो जी का दर्शन करके अर्धक्वाँरी तक के लिए ..... यहाँ भी ४ घोड़े ३००० में तय हुए ..... यहाँ मेरे घोड़े मालिक का नाम उत्तम था .. थोडा ही आगे बढे थे की उत्तम ने टैक्स देने के नाम पर २००० रूपए मांगे ..... मैं १५०० दे रही थी ... किन्तु वह अड़ा रहा .. आंटी ने उसे पैसे तो दे दिए किन्तु उत्तम मुझसे बुरी तरह चिढ गया .... भैरो जी के दर्शन के पश्चात् मुझे डराने के लिए उसने मेरा घोडा सबसे आगे बढाकर उसे बिकुडा कहकर उसकी पूंछ खींचकर भगा दिया .... किन्तु उसे नही मालूम था की मैं भी घुड़सवारी में पारंगत हूँ ..... मैंने तुरंत उस घोड़े की लगाम जो की बंधी हुई थी , उसे खोली और घोड़े को और भी तेज़ दौड़ा दिया ... अब पीछे वाले घोड़ो को सम्हालना मुश्किल हो गया और घोड़े मालिक की हालत खराब हो गई .... वह बिखुडा-इकडे-लिकुडा चिल्लाते एकदम पीछे दौड़ पडा ... फिर सीढियों से भी दौड़ते हुए उतरा ... मैंने भी घोड़े को अर्धक्वाँरी पर ही जाकर रोका .... उस दुष्ट को जमकर अपने पीछे दौड़ाया क्योकि मेरी जगह कोई भी होता तो उसकी इस हरकत से कुछ भी हादसा हो सकता था !
उसने गुस्से से मेरी और देखा .... मैंने भी उसे ऑंखें तरेर कर देखा .... बोला कोई भी कुछ नही .... उसने बाकी बचे पैसो के लिए और मैंने अपने परिजनों के लिए इंतज़ार किया !

भवन पर ही मैंने खाना लेते वक्त देखा की एक बुजुर्ग ने अपनी पत्नी के पीठ पर जोर से घूंसा मारा ..... रास्ते में कई पति-पत्नी लड़ते-झगड़ते देखे गए ... वही नव-विवाहितो में रोमांस भी खुलेआम देखने को मिला ..... यह कैसी श्रधा-भक्ति है , मुझे समझ में नही आई ... घोड़े वालो ने लूट मचा रखा है और उनके मन का न होने पर भक्तो के साथ कोई हादसा करने में भी पीछे नही हटते ! माता का दरबार भक्ति स्थल कम और पिकनिक स्पोट ज्यादा नज़र आता है ...... सच्चे श्रधालुओ और गरीब भक्त जो की घोड़े /हेलिकोप्टर का पैसा नही दे सकते उनके हिस्से में सड़क १/४ हिस्सा ही आता है ३/४ हिस्से को तो घोड़े वाले ही कब्जा कर लेते है ..... और कभी -कभी तो भक्तो के बीच इन घोड़ो की वजह से डर के मारे भगदड़ भी मच जाती है !

मैं यह संस्मरण आपसे साँझा कर रही हूँ...मित्रों ...बस इतना बताने के लिए कि भक्ति दिल से होनी चाहिए ,मन में श्रद्धा लेकर ही तीर्थयात्रा करें और वैष्णोदेवी तीर्थस्थल में इन घोडेवालों से भी सावधान रहें..साथ ही तीर्थस्थल पर गन्दगी न फैलाएं ,पवित्र तीर्थस्थल को पिकनिक स्पौट में न बदलें.....!!! जय माता दी !!!


(फोटो मेरे कैमरे से )

____ kiran srivastava ... Copyright © ... 21 :50 pm ....2:6:2012

Friday, May 25, 2012

अजीब दास्ताँ !

लगभग १२ वर्ष के लम्बे इंतज़ार के बाद आज मेरी बचपन की एक सहेली शबनम से फोन पर बात हुई .... उसका विवाह इंटर मिडियट के एक्जाम से पहले ही अलीगढ में एक व्यवसाई पुरुष के साथ हो गया था मात्र ५००० के मेहर पर ....उसके अब्बू बैंक में मैनेजर है .. वह पढने में काफी ज़हीन थी और सपने बेहद ऊँचे थे .... इस समय वह ८ मे से ५ जीवित बच्चो की माँ है .....मैंने काफी कोशिश की थी उससे मुलाकात की लेकिन कभी वह नही कभी मैं नही ..... हाँ हाल-चाल जरुर मिलते रहते थे की वह काफी धनवान घर में ब्याही है और सुख से है !
लेकिन उससे बात करने पर आज पता चला की वह आसमान से तोड़कर पिंजरे में कैद कर दी गई है .... नए ज़माने की यह दुल्हम ५ बच्चो की माँ होने के बावजूद भी पिंजरे में कैद है ..... सारे सपने को वह भूल चुकी है ! उसका और उसके परिवार की स्त्रियों का अब सिर्फ यही काम है की वह बच्चो की देखभाल करे ..... नौकरों के साथ मिलकर घर को सजाये-संवारे और पति -बच्चो एवं देवरों के मनमाफिक बढ़िया-बढ़िया खाना बनवाए .... हमेशा सजी-संवरी रह कर अपने पति का इंतज़ार करे !
वह बाहरी दुनिया से पूरी तरह तरह कटी हुयी है ... मेरा सन्देश तो हर बार उसे मिलता था किन्तु वह बात कर पाने में असमर्थ है .... क्योकि उसके पिताजी के घर पर भी कोई न कोई देवर उसपर निगाह रखे ही रहता था .... उन्हें उसका हिन्दू लड़कियों से बातचीत करना बिलकुल भी पसंद नही !
ससुराल में आसमान के नाम पर शबनम को सिर्फ घर के बाड़े का सिर्फ छोटा -सा एक हिस्सा ही दिखाई देता है .... यहाँ घर की दीवारे काफी ऊंची है .. और यहाँ ससुर और देवरों केअलावा कोई मर्द दाखिल नही हो सकता !
वह इस जिंदगी की आदी होकर जनानखाने का एक अंग बन चुकी है .... जहां की मर्द हर मायने में राजा होता है और औरत उसकी बाँदी ..... वह अपने सारे सपने भूल चुकी है ... खुश है अपनी जिंदगी में .!
और यह भी की उसके पति और देवर फेसबुक पर मेरे फालोवर है ,किन्तु उसे फेसबुक यूज करने की इजाजत नही ..... मेरी और उसकी मित्रता के बारे में उन्हें वह बता चुकी है .....मुझे बेहद पसंद करने वाले वह पुरुष मेरे विचारो को पसंद नही करते ....उसका खुद भी बहुत दिल चाहता है मुझसे बात करने के लिए किन्तु मैं खुद से कभी उसको कभी फोन न करूँ .... जब वह सही समय समझेगी तो मुझे खुद कॉल कर लेगी !

(शबनम , अगर तुम तक मेरा यह सन्देश पहुँच रहा है तो मैंने तुम्हारे पति एवं तीनो देवरों को और तुम्हारे उस भतीजे को भी ब्लोक कर दिया है ..... मुझे तुम्हारे कॉल का हमेशा इंतज़ार रहेगा )

._____________
____ kiran srivastava ... Copyright © ... 21 :15 pm ....25:5:2012

Tuesday, May 15, 2012

ताजमहल और शाहजहाँ की मुहब्बत !

आज फेसबुक के होमपेज पर घुमते -घुमते एक जगह नज़र पड़ी ... वहाँ पर ताजमहल की खूबसूरती ... शाहजहाँ के प्रेम की पावनता और भी न जाने क्या -क्या उसके प्रेम-प्यार सम्मान में कसीदे पढ़े गए थे !

लोगो को भले ही ताजमहल प्रेम का प्रतीक लगे तो लगे .... वो विश्व धरोहर हो तो हो .... अगर उसे सच में शाहजहाँ ने बनवाया है तो मुझे ताजमहल में अच्छा लगने लायक कुछ भी नही लगा ....उसको देखते ही उसके शफ्फाक पत्थरों पर जाने कितने ही इंसानों के खून के छींटे दिखते है ..... जाने कितने ही मासूम मजदूरों की कराहे दिखती है ..... इस इमारत के पीछे एक शासक का वहसीपन दिखता है ...!
और अगर , जैसा की आजकल विवाद चल रहा है की यह इमारत नही तेजोमहल मंदिर था जो की राजपूत राजाओ द्वारा बनवाया गया था , जिसे की शाहजहाँ ने कब्ज़ा कर लिया और उसे हेर-फेर करके ताजमहल का नाम दे दिया तब तो उस मुहब्बत की कहानी गई तेल लेने ... पहले सच्चाई का तो पता चले !
(हिन्दू मंदिरों को अपवित्र करने और उन्हें ध्वस्त करने की प्रथा ने शाहजहाँ के काल में एक व्यवस्थित रूप धारण कर लिया था ! मध्यकालीन भारत - हरीश्चंद्र वर्मा - पेज-१४१)

सवाल यह भी है की जिस शासक के प्रेम के इतने कसीदे पढ़े जाते है की उसने मरने के बाद अपनी मुहब्बत की याद में लोगो के हाथ काट-काट कर क्या कमाल की इमारत बनवाई है , क्या उसने जीते जी मुमताज को एक पत्नी का हक दिया भी था ?

मुमताज की मौत चौदहवे बच्चे को जन्म देते समय अत्यन्त कमजोरी की वज़ह से हुई थी, इसी से पता चलता है कि शाहजहाँ को उससे कितनी मुहब्बत रही होगी कि उसे बच्चे पैदा कराने की मशीन ही नही बल्कि पूरी फैक्ट्री ही बना डाला था !

शाहजहाँ मुमताज से ऐसा बे- इंतहा मुहब्बत करता था कि उसके हरम में तीन सौ एक्स्ट्रा बीवीया उसके गुलछर्रे उड़ाने के लिए रहा रहती थी ! एक कामुक बादशाह किसी एक पत्नी को इतना ही प्यार करता था तो उसे उसी से ही सम्बन्ध रखने चाहिये थे, एक्स्ट्रा तीन सौ बीविया किस काम के लिये थी ???

और तो और बेमिशाल पावन चरित्र के धनी शाहजहाँ के उसकी सगी बड़ी बेटी जहांआरा से भी उसके नाजायज रिश्ते थे ! जब इस बाप-बेटी के अवैध रिश्तो के चर्चे आम हुए तो मुल्लो की एक बैठक बुलाई गई , जिन्होंने एक हदीस का सहारा लेते हुए कहा की माली को अपने पेड़ का फल खाने का पूरा हक़ है ... !
(Francois Bernier wrote, " Shah Jahan used to have regular sex with his eldest daughter Jahan Ara. To defend himself, Shah Jahan used to say that, it was the privilege of a planter to taste the fruit of the tree he had planted."
According to Peter Mundy, another European traveler, Shah Jahan had illicit sexual relation with his younger daughter Chamni Brgum.)


74 साल की उम्र में जब उसे उसी के बेटे औरंगजेब ने आगरा के किले मैं कैद कर दिया था, और तब भी उसे 40 जवान लड़कियाँ ( शाही वेश्याए ) रखने की इजाजत दे रखी थी !

जिस शाहजहाँ की मृत्यु 74 साल कि उम्र में अत्यधिक कमोत्तेजक खा लेने का कारण हुई ( हिस्ट्री चैनल ) क्या वह इस लायक था की उसके प्यार की दुहाई दी जाए ....??
क्या ऐसे कामुक /वहसी व्यक्ति और उसके प्यार की कसमे खाकर लोग अपने प्यार को बे-इज्जत नही करते है ??

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किरण Copyright © ... 22 :12 pm ... 15:5:2012

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Monday, May 14, 2012

स्त्री-विमर्श !


अक्सर सामान नागरिक सहिंता का मुद्दा उठाया जाता है क्योंकि स्त्रियों को समान अधिकार प्राप्त नहीं है, पर हर धर्म और सम्प्रदाय वाले इसके विरोध में सिर्फ धर्म के कारण जाते है स्त्रियों को शिक्षा, उनको सामान अवसर तथा पुरषों कि समकक्षता से धर्म कि हानि नहीं बल्कि उसका उन्नयन होगा, जो पंथ दीवाल पर लिखी इबारत नहीं पढ़ पाता है उसकी प्रगति अवरुद्ध हो जाति है, सामान सहिंता बनाने कि बजाये अपने अपने सम्प्रदाय तथा धर्म में कुरीतियों, अन्याय तथा विभेदकारी कानूनों को समाप्त करने कि पहल होनी चाहिए तथा स्त्रियों को उनका उचित हिस्सा दिलाने का कार्य किया जाना चाहिए !

यहाँ यह समझ लेना अनिवार्य है कि अब अधिक दिनों तक स्त्रियों को निचले पायदान पर नहीं रखा जा सकता है यदि उन्हें बराबरी मिली, तो विकृतियों का जन्म होगा, विवाह संस्था में पुरषों के वर्चस्व के कारण सह-जीवन (बिना विवाह के साथ रहना ) बढ़ रहे है , बच्चे कि आवश्यकता भी अन्यान्य तरीकों से पूरी कि जा रही है पहले संयुक्त परिवार विघटित हुए अब एकल परिवार भी ध्वस्त हो रहे हैं !
________________ किरण श्रीवास्तव Copyright © ... 11 :45 pm ... 14:5:2012

Tuesday, February 28, 2012

खुशनुमा एहसास !


बीती रात की बात है ... लगभग एक बजे होंगे .... मैं पढ़ रही थी तभी मुझे बाहर एक पिल्ले की जोर से चीख सुनाई पड़ी ..... उसके पीछे-पीछे उसके अन्य-भाई बहन भी उसके चीखने लगे .... पिल्लो का ये करुण-क्रंदन सुनकर मुझे बेचैनी सी होने लगी ..... अकुलाहट में मैं तुरंत दरवाजा खोल बालकनी में आई ..... मैंने देखा की कालोनी का मेन गेट जो की छड वाला है , बंद है ..... गेट के अन्दर की तरफ श्वानो के ये मासूम छौने थे तो गे के दूसरी तरफ उनकी माँ ..... दोनों ही एक दुसरे से मिलने के लिए व्याकुल हो रहे थे ...... बच्चो का करुण क्रंदन जारी था .... गेट को खरोचते हुए दोनों तरफ से मिलने की नाकाम कोशिश हो रही थी ...... मुझसे ये दृश्य देखा नही जा पा रहा था ..... इतनी रात को घर से बाहर आने की भी हिम्मत नही हो रही थी ..... उनका करुण- क्रंदन मुझे बेचैन भी कर रहा था ...... इस समय अगर नानी को जगाती तो वो इतनी रात को " किरण चालीसा " शुरू कर देती ...... मैं मन ही मन ईश्वर से उनकी सहायता के लिए प्रार्थना करने लगी ...... अभी - मिनट ही बीते होंगे की तभी एक बन्दा जो की शायद देर रात की ड्यूटी करके लौटा होगा , बाईक से आया ..... उसने जैसे ही गेट खोला , माँ-बच्चे आपस में मिलकर किलक उठे ...... उनका एक-दुसरे के साथ खेलते हुए किलकना देखकर मेरा भी मन प्रफुल्लित हो उठा ..... मैंने चैन की सांस ली .... और घर में आकर सो गई !!
किरण Copyright ©... २१:23 ...26-8-2011

Sunday, February 26, 2012

आस्था !



मेरी आस्था " गाय '' में है, "गाय" कोई जानवर नहीं है , वो धर्म है , ये एक लाभदायक धर्म है इसके अंतर्गत निन्म गुण है ______
1- ये पुरुषवादी धर्म नहीं है ये नारीवादी धर्म है !
2- ये अकेला ऐसा धर्म है जो दूध देता है और इसके मूत्र -गोबर के इस्तेमाल से बाबा रामदेव जैसे राजनेता \ धर्मनिष्ट\व्यापारी \अर्धनारीश्वर पैदा होते हैं !
3-कुछ धर्म जो आवारा सडको पर फिरता है उसकी रक्षा के लिए आश्रम बनाये जाते हैं चंदा लिया जाता है जिससे कई प्रकार के वो पैदा होते हैं ,, वो आश्रम वालो को क्या बोलते हैं ?

अब इसकी कमजोरी _____
1- जो धर्म आवारा फिरता है वो अक्सर प्लास्टिक खाकर पेट कि बीमारियों से मर जाता है !
2- इस धर्म कि अक्सर सड़क दुर्घटनाओं में असमय मृत्यु या अपाहिज होने का खतरा बना रहता है !
3- इस धर्म को एक सम्प्रदाय विशेष के लोग चाव से खा जाते हैं !
:'( .....रोना भी आगया ...:'(

___________________________________________________________
इस धर्म का एक जंगली संस्करण भी होता है जो नीलगाय कहा जाता है वो अक्सर किसानो कि फसलों को बर्बाद कर देता है,,वो पीछे से गधे के जेसा और आगे से घोड़े के जैसा होता है ! वो धर्म का रंग नीला नहीं होता है ,, शेष फिर कभी .......................

नोट- इस धर्म में हमारी आस्था है कृपया हमारी आस्था को ठेस न लगाये !!!

_____________________ किरण श्रीवास्तव !!

सजा किसकी ?

आज दिल्ली की एक खबर आँखों के सामने से गुजरी .... पति को शक था की पत्नी का किसी दुसरे युवक से सम्बन्ध है और इसी शक के चलते घर में अक्सर कलह हुआ करता था ! एक दिन झगडे के बाद पत्नी ने आत्महत्या कर ली ..... पति इस डर से की अब उसे पूरा जीवन जेल में गुजरना पड़ेगा इसलिए उसने भी उसी साडी से लटककर आत्महत्या कर ली !

सोचने की बात तो ये है की अब बच्चो का क्या होगा ?? पत्नी जिस अहम् में थी की वह आत्महत्या के बाद पति को औकात में ला देगी , वह तो हो न सका .... किन्तु बेकसूर बच्चे जिंदगी भर की सज़ा पा गए !

मुझे आज तक समझ नही आया की ज़हर खा कर मर जाउंगी , आग लगा लूंगी ऐसा धौंस देकर क्या दिखाना चाहती है स्त्रिया ? क्या ये ब्लैकमेलिंग है या हताशा या फिर हमारी कमजोरी ??
किन्तु जिस देश में सती हो जाने को , जमीन में समा जाने को , भूख हड़ताल करके ब्लैकमेल करने को महान समझा जाता है , उस देश में ऐसी सोच होना विचित्र भी नही है !!

हम स्त्रिया अभी तक यह क्यों नही समझ पाई की हमारा जीवन अपने आप में बेशकीमती है ..... हमारी भी घर-समाज में उपयोगिता है ! अगर पति के किसी दूसरी स्त्री से सम्बन्ध है , या पति हम पर शक करता है या पति अपने परिवार वालो की सुनता है तो इसमें हमारे मरने की बात क्यों ? समस्या सुलझ नही सकती तो क्यों न अलग रहा जाए .... ?
किन्तु स्त्रिया ऐसा न करके धमकियों के सहारे अपने पति को ही काबू में रखना चाहती है , और यही समस्या की जड़ भी है !

स्त्रियों की इस सोच के पीछे समाज का भी कम योगदान नही ... स्त्री के घर-समाज में उपयोगी होने को समाज स्वीकार करने में हिचकिचाता है ... उसे सिर्फ घर के अन्दर रखकर उसमे हीनभावना भर दी गई ... ऊपर से कानून ने भय निकालकर आत्मविश्वास भरने की बजाय उसे ब्लैकमेल करने का हथियार पकड़ा दिया !
भयावह नतीजे अब सामने है ..... हज़ारो परिवार कलप रहे है .... बुजुर्ग स्त्री -पुरुष सही/गलत मुकदमो में जेल के अन्दर सड़ रहे है !

किरण Copyright ©... २१ :४६ ...२६-२-२०१२

Thursday, December 22, 2011

अपनों का शिकार - एक बेजुबान मासूम .



यूँ ही एक खुशनुमा सुबह को एक नन्हे-से बच्चे ने एक शिशु श्वान-शावक को सड़क पर अंगडाई लेते हुए देखा ... अभी उसकी आँख भी नही खुली थी ..... बच्चे को प्यार आया और उस श्वान-शावक को वह गोद में उठाकर अपने घर ले आया ..... कालोनी के नन्हे बच्चो ने मिलकर उसका प्यार से नाम रखा "ब्रावनी" !!

बच्चे के साथ ब्रावनी भी बढ़ने लगा .... कुछ गस्सैल-सा , उलझे प्रकृति का श्वान निकला वह ..... लेकिन प्यार की भाषा और कालोनी के लोगो को बखूबी पहचानता था ..... सभी लोगो को सुबह वह कुछ कदम तक छोड़ने वह जरुर जाता था .....मेरे भी बाईक के पीछे वह चौराहे तक भागते हुए आता था ...उसको लाने वाले बच्चे भी बड़े हो चुके है ... वे गाहे -बगाहे उसे पीट भी देते थे ..... लेकिन ब्रावनी अपनी स्वामी-भक्ति कभी नही भुला .....!!

वह कालोनी के बाहर के लोगो का उस एरिये में अकेले आ पाना बहुत मुश्किल कर देता था ....उसकी वजह से कालोनी में चोरो के कदम नही पड़ पाते थे...... यही कारण था की वह बहुत से लोगो के आँख की किरकिरी भी बना हुआ था .... !

आज शाम को मेरे पीछे बाईक के पीछे किसी के कदमो की आवाज़ नही आई .... मेरे आँखे घर लौटते वक्त भी उसे ढूंढ़ रही थी ...... आखिर रहा नही गया ..... मैंने अभी बच्चो को बुलाकर पूछा ..... पता चला की अब 'ब्रावनी' इस दुनिया में नही रहा .... दोपहर में उसे म्युनिसपालिटी की गाडी उसे उठाकर ले गई ..... बीती रात किसी ने उस मासूम को "ज़हर" खिला दिया था .!

इस समय कालोनी में जाने कितने श्वान घूम रहे है .... जाने कितने बाहरी आ-जा भी रहे है .... लेकिन उन्हें टोकने वाली आवाज खामोश हो चुकी है !

_______________किरण श्रीवास्तव दिनांक २१-१२-२००११...११:३७ रात्रि

Wednesday, October 19, 2011

कैसी है ये जिंदगी ??


आज हास्पिटल में मैंने एक युवक को देखा ... उदास चेहरा , लरजती आँखे , बिखरे बाल देखकर यूँ लगा जैसे की उसके ह्रदय में हाहाकार मचा हुआ है .... मैं उसके पास गई , कारण पूछते ही वो फफक कर रो पड़ा ..... गाँव से आया था वो ,उसके पिताजी की पहली डायलिसिस थी ..... इसके लिए उसने अपनी जीविका के एकमात्र साधन अपने खेत को गिरवी रख दिया था ..... किसी भी हाल में वह अपने पिताजी को बचाना चाहता था ..... डॉ के द्वारा बताये गए डायलिसिस के लिए लाये हुए सामान में कुछ कमी थी ...... जिसके लिए डॉ ने उसे माँ-बहन की गाली देकर भगा दिया था ...... मैंने उसे खाना ऑफर किया , उसने इनकार कर दिया ..... फिर मैं उसे लेकर डॉ के पास गयी , डॉ की इंतजारी के चलते सामने न्यूट्रीशियन के रूम में उसे लेकर गई .......न्यूट्रीशियन की चिंता यह थी की डायलिसिस के बाद वह अपने पिताजी का पोषण किस प्रकार कर पायेगा , जो की काफी खर्चीला था ....... उसने उसको कुछ फ़ूड सप्लीमेंट अपनी तरफ से मदद में दिए .......उस भूखे प्यासे युवक की आँखों में अपने पिताजी को सोचकर चमक सी आ गई .....डॉ ने करीब ४-५०० रूपए के सामान बताये जो की लाने थे मैंने उसको १५०० रूपए देकर मेडिकल स्टोर भेज दिया ...... डॉ से बात हुयी ..... डॉ ने बताया की डायलिसिस के बावजूद भी उसके पिताजी को अब ज्यादा दिन तक बचाया नही जा सकता .....!
अब मेरी आँखों में आंसू थे ...... मेरी पास हिम्मत नही थी उस युवक से सामना कर पाने .... समझ नही पा रही थी की उसकी जीविका का क्या होगा ....... मैंने भी लरजते हुए आँखों के साथ ख़ामोशी से घर की ओर रूख कर लिया !!
(यह पूरी तरह से सत्य घटना है )

Sunday, July 31, 2011

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अघोषित सेंसरशिप !



विगत वर्षों पर नजर डालें तो पता चलता है की कभी छद्म राष्ट्रवाद के नाम पर , कभी आतंकवाद से लड़ाई के नाम पर , कभी धर्मिक आस्थाओं की आड़ लेकर . कभी समाज में नैतिकता की रक्षा के बहाने से अभिव्यक्ति की आजादी को दबाने की निरंतर कोशिश होती रही है हम पर एक अघोषित सेंसरशिप थोपी जा रही है , बोलने की आजादी के क्षत्र को सीमित और संकुचित किया जा रहा है . ये बात तो तय है की अगर आपके विचार शासक वर्गो की मनमानी के विरुद्ध हैं राजनितिक विचारधाराओं ( कांग्रेस, बीजेपी , दक्षिणपंथी , वामपंथी नरमपंथी या मध्यममार्गी ) के विरुद्ध हैं तो फिर आपका विरोध होना निश्चित है , चाहें देश के टुकड़े हो जाएँ लेकिन कोई भी अपनी विचारधारा से आगे सोचने को तैयार नहीं होगा.. वो लोग अपहिजो जेसे बन जाते हैं और आपके विरोध में किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं ,

इसमें जो बात सबसे ज्यादा परेशां करने वाली होती है वो बात ये है की ऐसी कोशिश सरकार या पुलिस द्वारा नहीं हो रही है , बल्कि ये कोशिश साम्प्रदायिक , फासीवादी , भगवा देशभक्ति और कट्टरपंथियों के द्वारा कॉर्पोरेट जगत के सहयोग से हो रही है , इसके लिए हमेशा की तरह बिना दिमाग की भीड़ को भड़काया जाता है , और राज्य हमेशा की तरह एक आज्ञाकारी सेवक की भांति इन शक्तियों के सहयोग और समर्थन में खड़ा रहता है अब तो इसमें प्रसार भारती कानून और विज्ञापन के चक्कर में पत्रकार भी शामिल हो गए हैं !

वर्तमान में समाचार चेनल देशभक्ति , आतंकवाद ,विकास और नैतिकता के नए पुरोधा बन गए है जो उनके सुर में सुर नहीं मिलाएगा वो देशद्रोही , विकासविरोधी और अनैतिक माना जायेगा , हम में कितने लोग किसी खबर की सत्यता को जानने में रूचि रखते हैं कितने लोग हैं जो ऐसी खबरे सुनकर खुद को टटोलने का साहस रखते हैं , क्यं लोग बिना विचारे और सोचे समझे भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं अगर आप सचमुच देशभक्त हैं तो सत्य की खोज क्यों नहीं करते . जबकि हम कहीं कहीं जानते हैं की सत्य गढा जा रहा है

हमें किसी की अभिव्यक्ति की आजादी को छिनने का अधिकार राज्य और इन तत्वों को नहीं देना चाहिए जो उन मुद्दों की तरफ जनता का ध्यान नहीं पहुँचने देना चाहते जो वर्षों से परेशानी और अखंडता का कारण बने हुए हैं ...

सिर्फ एक हिस्से का चमकना भारत का चमकना नहीं है पूर्वोत्तर जल रहा है , कश्मीर में चैन नहीं , विदर्भ में किसान मरते हैं , बुंदेलखंड में लोगो को पानी नहीं ... लेकिन हम कुछ देखना नहीं चाहते , अगर कोई बोलता है तो उसको भी इस अघोषित सेंसरशिप के टेल चुप करा दिया जाता है ... अरुंधती बोलती है तो भी आतंवादी कहलाती हैं , इरोम शर्मिला चानू नहीं बोलती , दस साल से भूख हड़ताल पर है तब भी आतंकवादी कहलाती है ........

क्या सिर्फ इंडिया ही है जिसमे लोकतंत्र हैं अभिव्यक्ति की आजादी है भारतियों का क्या ? उनका कोई अधिकार नहीं ? उनके लिए कोई संविधान नहीं ?

वर्तमान भारत का सच !



आज आप भारत को देख सकते हैं , ये एक राष्ट्र नहीं बल्कि दो महादीप में बदल रहा है . अगर आप अमीर है माध्यम वर्ग में गिने जाते हैं अंग्रेजी भाषा पर पकड़ रखते हैं , तो कोई शक नहीं की आपका भविष्य उज्जवल है आप उस महाद्वीप का हिस्सा हैं जहाँ अवसर ही अवसर हैं आपके पास रहने को शानदार जगह है , रोजगार की दिक्कत नहीं , बढ़िया शराबखाने , बढ़िया मकान , परिवार के साथ छुट्टी बीतने का भरपूर अवसर आपके पास है , आपको मताधिकार की पूरी आजादी है .. आप एक शानदार लोकतंत्र का हिस्सा है और उस पर गर्व कर सकते है ...

लकिन अगर आप निम्न वर्गीय हैं , पिछड़े , गरीब ,आदिवासी, दलित या मुस्लिम हैं ( एक छोटे भाग को छोड़कर ) तो आप के लिए दूसरा महाद्वीप इन्तजार कर रहा है , जो अंधेरो से भरा हुआ है जहाँ कोई साफ़ भविष्य नहीं है आपसे अवसरों और गरिमामय जीवन जीने की आजादी दूर होती जा रही है ...

हमारे देश में अमीर और गरीब की खाई निरंतर चौड़ी होती जा रही है क्या आपने कभी महसूस किया है ? गरीब और गरीब हो रहा है अमीर और अमीर हो रहा है , लेकिन जो इस बात को महसूस करेगा .. जो भी निम्न वर्गीय, पिछड़े , गरीब ,आदिवासी, दलित और मुस्लिम के हक़ में लिखेगा या बोलेगा ... उसका विरोध करने को तैयार मिलेंगे फासीवादी , साम्प्रदायिक , कट्टरपंथी अपनी अपनी विचारधारा का पताका थामे राजनितिक संगठन और कार्पोरेट जगत के साम्राज्यवादी ....... कारपोरेट जगत हमेशा इनको प्रायोजित करता रहेगा क्योंकि ये बाजारवादी संस्क्रती है जहां मध्यम वर्ग का तुष्टिकरण जरुरी है क्योंकि वो पूंजीवादी संस्क्रती का आधार है वो एक बड़ा बाज़ार हैं

क्या आपने कभी महसूस किया है ?

बाबा तेरी यही कहानी -- गले में चुन्नी आँख में पानी :-(



बाबा रामदेव ने काफी समय पहले कहा था की उनसे एक मंत्री ने रिश्वत मांगी है ,, अब बात बीजेपी वालो के गले की हड्डी बन गयी थी ,, उनमे और बाबा जी में क्या सेट्टिंग हुई ये तो वाही जाने ,, क्योंकि इस बीच बाबा पर जमीन हड़पने के केस भी हो चुके थे ,, और संतो में उनके खिलाफ गुस्सा भी था क्योंकि उन्होंने संत दर्शन नामक पुस्तक में हिंदू समाज को काफी नकारात्मक बातें कही थी ...

बाबा की राजनितिक विकल्प की घोषणा से बीजेपी भी परेशान थी क्योंकि बाबा ने बीजेपी के ही वोट काटने थे ,, बाबा की लोकप्रियता से संघ में भी हलचल मची पडी थाई क्योंकि लोगो ने शाखा के बजाय शिवरो में जाना शुरू कर दिया था आखिर बाबा निरोगी ? बना रहे थे .. वो परम योगी थे ? ये अलग बात है की नो दिन के अनशन में उनकी चीखे निकल गयी और गंगा पुत्र परम पूज्य स्वामी निग्मानंद जी ( जिनको फेसबुक पर भुला दिया ) चार माह अनशन के बाद वीरगति को प्राप्त हुए ..

खेर आगे चलते हैं बाबा बेचारे भोले भले मानुष , ठीक रजिया गुंडों में फस गयी जेसे कांग्रेस , बीजेपी और संघ के चक्कर में ऐसे घनचक्कर बने की रामलीला मैदान से अर्धनारीश्वर बनकर निकले .. यहाँ से बाबा को बर्बाद करने का जिम्मा बीजेपी ने उठाया उसने बाबा को हरिदावार्र में अनशन पर बैठा दिया

सोचने वाली बात है की वहाँ बाबा से कांग्रेस को कोई दिक्कत नहीं थी ये कांग्रेस और बीजेपी की चाल थी ताकि बाबा का अनशन ढंग से फ्लॉप हो जाये और बाबा जिंदगी में राजनितिक विकल्प की बात न सोचे

वही हुआ भी .. बाबा तुमको तो अपनों ने मरवा दिया .. ही ही ही ही

""""""""" राजीनीति किसी की नहीं होती बाबा """""""""""""""""""

अब अपना व्यापार भी खो दिया आपने , प्यार भी खो दिया .... अब बताऊँ क्या होगा ,, बहुत पड़ेगी ,,, दोनों मिले हुए हैं कांग्रेस भी बीजेपी भी .... थोडा बहुत संघ को भी तो प्यार है आपसे ,, अब देखो कहाँ कहाँ से कौन कौन सी जांच करवाते हैं ये आपकी !



Thursday, July 21, 2011

लोकतांत्रिक आस्था के कातिल !


किसी भी संसदीय व्यवस्था में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों का महत्त्व होता है, एक आदर्श संसदीय व्यवस्था वही है जहाँ विपक्ष मजबूत और जागरूक हो जो सत्ता पक्ष पर आदर्श दबाव बनाये रखे, ना की ऐसा विपक्ष जो सरकार को समुचित रूप से उसके कृत्यों पर घेर ना... सके और उसकी नीतियों पर सवाल उठाने की बजाय विरोध की राजनीति में इतना गम हो जाये की सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने की बजाय व्यक्तिगत जीवन पर आक्षेपो की गन्दी राजनीति में उतर आये !
प्रारम्भ में यध्यपि कांग्रेस का वर्चस्व रहता था परन्तु विपक्ष में अनेक कद्दावर नेता होते थे, लेकिन वर्तमान परिद्रश्य को देखते हुए मेरा चर्चा का विषय इंदिरा युग के अवसान के बाद से शुरू होता है !
१९९० के आस पास से बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही राजनीति रह गयी है तथा अन्य दल मात्र इनके आस पास ही रह गए हैं जो एक अच्छा संकेत हो सकता था की दो पार्टी मुख्य दल रहे जिसमे की स्थायी सरकार की सम्भावना अधिक रहती है हम जानते हैं की संघ के प्रभाव वाली पार्टी बीजेपी १९९० में एक लहर के परिणामस्वरूप आश्चर्यजनक रूप से उभरी, और यही लहर इसको संघर्ष की राजनीति से परिचित नहीं करवा पायी जिस पर आगे चर्चा की जायेगी !
हम जानते हैं की १९९१ की कांग्रेस की सरकार एक लचर सरकार थी जो विश्व बेंक और उदारीकरण की नीतियां लायी, सबसे बड़ी विपक्ष की गलती यहाँ ही थी, या कहें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की मिलीभगत या विदेशी दबाव यहाँ साफ़ दीखता है, जब उदारीकरण हो रहा था ,जिस समय हमारे संसाधन विदेशी हाथो में जा रहे थे, जब रोजी रोटी, रोजगार और हमारे प्राक्रतिक संसाधनों पर हक हकूक पर चर्चा होनी चाहिए थी तो विपक्ष भावनाओ की राजनीति में व्यस्त था, विपक्ष को ये भान ही नहीं था की हम आर्थिक गुलाम बनने जा रहे हैं, और हमें एक ऐसा उदारीकरण मिला जिसने अमीर गरीब की खाई को और बढा दिया, भारत भले ही चमक गया हो परन्तु भारतीय और बुरी दशा में गए !
इसके बाद की सरकारे आई जी खिचड़ी सरकारे थी, जिन पर चर्चा यहाँ का विषय नहीं है फिर बीजेपी की प्रथम स्थायी सरकार आई जिससे देश को बहुत उम्मीदे थी लेकिन ये भी कांग्रेस की तरह ही निकली. जनता को जल्द ही पता चल गया की राष्ट्र , धर्म, गौरव, संस्कृति आदि की बातें मात्र छलावा साबित हुई. इंडिया शाईनिंग का नाटक फेल हो गया और २००४ से बीजेपी का मुख्य विपक्षी पार्टी का सफर शुरू हुआ और जो कांग्रेस की निक्कमी सरकार के लिए आनद का सफर रहा !
बीजेपी ने भारत को कभी मजबूत विपक्ष नहीं दिया जिस्जा लाभ कांग्रेस ने बखूबी उठाया, बीजेपी का अटल चेहरा छुप जाना भी इसका मुख्य कारण रहा क्योंकि नए पीढ़ी के नेता संघर्ष से परिचित नहीं थे और ४० साल से राजनीति कर रहे आडवानी जी कभी इस बात को एहसास नहीं करा पाए की एक विपक्ष के रूप में जनता की समस्याओं पर वो सरकार को घेर रहे हैं ...!
बीजेपी का इतिहास है की उसने मुद्दों को छोड़कर भावनाओ की राजनीति की है उत्तर प्रदेश से जहाँ उसने अपना शानदार आगाज़ किया था वहा भी उसका जनाधार नहीं बच पाया, बीजेपी की रणनीतिक भूलो की एक लंबी लिस्ट है मगर जो मुझे एक विपक्ष के रूप में याद है वो निम्न रूप में समझी जा सकती है..... !
२००४ में बीजेपी ने सोनिया के विदेशी मूल का भावनात्मक मुददा उठाया और व्यक्तिगत आक्षेपो की राजीनीति की शुरुआत की ये एक भावनात्मक मुददा था जिसे सोनिया ने प्रधानमंत्री का पद ठुकरा कर अपना कद बढाने का आधार बनाया और वो और मजबूत हो गयी और ये तो सबको पता है की राजा से बड़ा उसे बनाने वाला होता है !
यहाँ सुषमा स्वराज की अजीब अजीब घोषणाओ ने भी बीजेपी का खूब मखौल बनाया और जनता के बीच कहीं कहीं उनके प्रति नकारात्मक सन्देश गया ! इस लोक सभा में मुख्य विपक्षी पार्टी सरकार को क्या घेरती? वो अपने अंतरकलहो से ही जूझती रही, आडवानी जी ने अपने विश्वासपात्रो से कुछ अधिक ही प्रेम दर्शा दिया जिससे बीजेपी में अन्दुरुनी घमासान मचा रहा !
बीजेपी की एतिहासिक भूल अगली लोकसभा में भी जारी रही जहाँ उसे मनमोहन सरकार के शासनकाल पर सवाल उठाना चाहिए था वहाँ उसने मुददा बनाया कमजोर प्रधानमंत्री बनाम मजबूत प्रधानमंत्री? नीतियों की चर्चा एजेंडे की, जनता को अब दोनों में से एक चुनने का विकल्प था, जनता ने आडवानी को कमजोर समझ लिया, ये व्यक्तिगत रूप से केंद्रित राजनीति का एक और उदाहरण रहा जिसमे बीजेपी ने मुह की खायी !
बीजेपी एक और अंतर्कलह होता है जो उसे कमजोर करता है, संघ की प्रष्टभूमि के नेताओ को गेर संघी नेताओं पर वरीयता मिलना जिस कारण अक्सर संघ से ऐसे नेता बीजेपी को निर्यात किये जाते हैं जिनमे राजनितिक समझ का पूर्ण आभाव होता है वर्तमान अध्यक्ष इसके उदाहरण है जो शायद किसी भी अन्य दल की अपेक्षा सबसे कमजोर हैं !
बीजेपी में अनुशासन का हमेशा आभाव रहा है, जसवंत सिंह, उमा भारती, सुषमा स्वराज, कल्याण सिंह, इत्यादी नेताओं के वक्तव्यों ने पार्टी की खूब फजीहत करवाई कई तो अंदर बहार के खेल में ही लगे रहे, आज भी पता नहीं कब कोई कौनसी किताब लिख दे , कब कोई कहीं सजदा कर दे और कब उमा भारती पार्टी मीटिंग में लड़ पड़े ये पता नहीं चलता !
अगर आपको कारगिल याद है तो याद कीजिये की अपनी जमीन में घुस आये आतंकवादियों को भागकर सेकडो जवानो की कुर्बानी को विजय दिवस के रूप में बीजेपी ही मना सकती है !
अमृतसर में खड़े जहाज को कंधार भेजकर आंतरिक मामले को विदेशी बनाने की कला कथित लोह पुरुष के ही बस की बात है !
पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष इतना कमजोर था की बेचारा स्टिंग ऑपरेशन में पैसे खाते पकड़ा गया !
चलिए आगे बढते हैं वर्तमान समय में भी बीजेपी ने विपक्ष के रूप में हमेशा गलत समय पर गलत जगह उपस्थिति दर्शायी है जेसे__
संयुक्त संसदीय समिति पर संसद चलने देना. जबकि ये सबको पता है की इसका गठन चार बार हुआ और हल कुछ नहीं निकला क्योंकी इसकी रचना ही इस प्रकार होती है की सत्ताधारी आराम से रह सकते है हाँ विपक्षियो को जो इसके सदस्य बनते हैं कुछ भत्ते जरुर मिल जाते हैं, यहाँ जनता की नजर में ये मुददा कोर नाटक साबित हुआ और विपक्षी दल मात्र नौटंकी करने वाले साबित हुए !
कामनवेल्थ, जी स्पेक्ट्रम और आदर्श घोटाला जेसे कई घोटालों पर जहाँ सरकार को आराम से घेरा जा सकता था वहा विपक्षी दल "लाल चौक " पर झंडा फेहराने निकल लिए !
अगर आपको याद हो तो बीजेपी जिस सोच का प्रतिनिधत्व करती है वो अब्दुल्ला परिवार को डा० श्यामा प्रसाद मुखर्जी का कातिल मानती है पर बीजेपी ने इनसे गठबंधन किया था और उस समय कोई झंडा "लाल चौक पर फेहराना याद नहीं था !
अभी अभी जब अन्ना नेताओं पर गरज रहे थे सरकार के भ्रष्टाचार पर आंदोलन कर रहे थे तो अपने ब्लॉग पर आडवानी जी सफाई दे रहे थे, अजीब खेल है !
अब इसे सत्ता पक्ष और विपक्ष की मिली भगत मानी जाये या क्या कहा जाये जो इतने सारे मुद्दों पर विपक्ष ध्यान नहीं देता है !
बीजेपी की सबसे बड़ी कमी यही है की वो यथार्थ और व्यावहारिकता से दूर भावनात्मक और व्यक्तिगत आक्षेपो और संप्रदाय विशेष पर केंद्रित राजनीति पर ही अटकी है जबकि भारत की जनता पिछले २० सालो में बहुत परिपक्व हो गयी है इसलिए बीजेपी केन्द्र की राजनीति में निरंतर बुरी अवस्था में है !
हम आशा करते हैं की बीजेपी अपनी भूलों से सबक ले और भारत की संसद में विपक्ष की भूमिका असरदार तरीके से निभाए ताकि एक आदर्श लोकतंत्र की स्थापना हो सके ............!

अंत में { एक सवाल अन्ना से पूछना था आखिर अन्ना आप बीजेपी का समर्थन लेने किस आधार पर गए ? क्या आपको लगता है की बीजेपी ने लोकतंत्र को प्रभावी बनाने और भ्रष्टाचार पर सरकार को घेरने का कोई प्रयास किया है, दरअसल आपकी भी अपनी महत्वकांक्षाएं है ..पर ऐसे थोड़े ही होता है }

____________मीतू Copyright © 20 July 2011 at 20:50

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Saturday, July 16, 2011

जंतर मंतर---जादू मंतर !!


क्या ? सचमुच ? अरे हाँ .................!

अन्ना हजारे १६ अगस्त से फिर जंतर मंतर पर अनशन पर बैठेंगे ? जंतर मंतर नहीं पता क्या ?

जंतर मंतर जादू मंतर ......... शूऊऊऊऊ ............. भरष्टाचार गायब !!


पहले भी तो बेठे थे उनको देखा देख एक बाबा भी अपने भक्तो को क्रांतिकारी बताकर रामलीला करने बैठ गए थे, एक ही मुददा था पर अढाई चावल की खिचड़ी दोनों अलग अलग पका रहे थे दोनों के सामने भ्रष्टाचारी सरकार थी , जिसने _____

  1. अन्ना और सिविल सोसायटी की हालत आटे के चिराग सामान कर दी, जिसे घर रखूं तो चूहा खाए बाहर रखूं तो कव्वा ले जाये !
  2. बाबा बेचारो का तो वही काम हुआ , आज मेरी मगनी कल मेरा ब्याह टूट गयी टंगड़ी रह गया ब्याह, एक दिन का शो एक दिन में खत्म, सारी राजनितिक महत्वकांक्षाएं धरी की धरी रह गयी . कोई राजनितिक विकल्प न मिला जनता को !

सरकार के सामने दोनों अंडे रह गए जो बच्चे को ची ची करना सिखाना चाह रहे थे ..........!!


याद है , जब अन्ना जंतर मंतर पर बेठे थे तो वो बिलकुल गंगा स्नान, चार धाम और मक्का हज यात्रा जेसा पवित्र बना हुआ था ! लगता था जंतर मंतर चले जाओ और सारे पाप धो आओ, सारे पाप उन् दिनों पुण्य में बदल रहे थे ! अरे हाँ ,पुण्य से याद आया जब तक बीवरेज का पानी नही था तो पानी पिलाना भी पुण्य का काम था आजकल तो व्यापार बन गया है , खैर ऐसे पुण्य तो आपने कई किये होंगे पर जंतर मंतर आप गए थे या नहीं ?

अरे सारे धरने प्रदर्शन, देश प्रेमी राजनितिक रेलियां वही होती हैं भूख हडतालो का तो धाम है जी , कुल मिलकर भारत का लोकतंत्र वही बसता है आप गए थे या नहीं ? बुलाया तो होगा आपको भी ? MSG, MAIL, FACEBOOK, TWITTER, के जरिये नहीं बुलाया क्या ? अरे सारी क्रांति आजकल यही तो होती है नारेबाजी देशभक्ति और आस्था का तो धाम है फेसबुक, और सबसे बड़े देशभक्त है ये - फेस्बुकिया देशभक्त ! खैर , आप जंतर मंतर गए थे या नहीं ?

अरे वहाँ पब्लिक स्कूलों के गिटर पिटर अंग्रेजी बोलने वाले बच्चे थे, विश्वविद्यालय के छात्र थे , जामिया वाले भी थे ,डी०यु० वाले भी तफरीह करने नहीं गए थे, आई पी एल के दीवाने भी वही थे. वहाँ बहुराष्ट्रीय कंपनियों के चहेते मध्यम वर्ग के वे लोग भी थे जो अपने बच्चों को आंदोलन, क्रान्ति, नेतिकता और देशभक्ति का पाठ पढाने आये थे, यहाँ हालत ऐसे थे की "आँख एक नहीं और कजरोटा दस दस" !! खैर , आप जंतर मंतर गए थे या नहीं?

पता है -- वहाँ पर सब थे अगर नहीं थे तो, किसान नहीं थे, मजदुर नहीं थे, दिहाड़ीदार नहीं थे, ठेला रिक्शा चलने वाले नहीं थे दलितो और पिछडो गरीबो का वहाँ कोई स्थान नहीं था, भला क्रान्ति से इनका क्या मतलब , अब भले ही देशवासियों की हालत "आँख के आगे नाक सूझे क्या ख़ाक " जैसी ही थी. अरे जब वहा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मेनेजर थे तो भला किसानो का वहा क्या काम ? खेर जाने दीजिए आप जंतर मंतर गए थे या नहीं ?

सोचने की बात है अगर किसान आंदोलन करेंगे जंतर मंतर आयेंगे तो दिल्ली का ट्रैफिक जाम न होगा? मीडिया दिन भर उनको न कोसेगी क्या ? कि किसानो ने रास्ता जाम कर दिया पूरी दिल्ली परेशान है, अब भले ही किसान मरते रहे आत्महत्या करे , भाई ये उनका रोज का काम है कोई सरकार या मीडिया या कोई अन्ना क्यों सुने उनकी, भला उनके साथ क्या बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मनेजर होते है क्या ? और जिसके साथ कंपनिया नहीं उसके साथ मीडिया नहीं, ये विज्ञापन का खेल है भैया? अन्ना की तरह अपने साथ मेंनेजर लाकर दिखाए तो सही किसान, तभी तो क्रान्ति मानी जायेगी, लेकिन पता नहीं आप जंतर मंतर गए थे या नहीं ?

खेर आपके लिए एक खुशखबरी है. १६ अगस्त से अन्ना हजारे फिर अनशन पर बैठ रहे हैं,, फिर पवित्र माहोल होगा ? राजनीति और नेताओं को गाली दी जायेगी , गाली सरकारी नेताओं को होगी ब्लॉग पर सफाई आडवानी जी देंगे, ऐसा पवित्र माहौल होगा की सारे पाप धुल जायेंगे. अबकी बार तो आप जायेंगे न ?

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अब हम काहें कुछ बोले, आजकल क्रान्ति गिटार पिटर अंगरेजी वाचको, बहुराष्ट्रीय कंपनी के मनेजरो, और भरपूर मिडिया कवरेज से ही तो आवत है , औरो की का जरुरत ? ऊ तो सिरफ बोझ ही बने हुए हैं जी , एक बात कहूँ अन्ना जी ,,,,,,,, कुछ भी करना पर बाबा जइसन न होना देना की आगे जाऊं तो घुटना टूटे पीछे हटूं तो आँख फूटे, अन्ना पक्का जंतर मंतर को तहरीर चौक बना देंगे भले ही वास्तविक क्रांति हो या न मीडिया तो हैं न , मेनेजर हैं न, बहुराष्ट्रीय कंपनियां साथ हैं तो ------------- !!

मीतू !! ........... Copyright © .....17:7:2011 ... 12:30 am..


 

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