क्या ? सचमुच ? अरे हाँ .................!
अन्ना हजारे १६ अगस्त से फिर जंतर मंतर पर अनशन पर बैठेंगे ? जंतर मंतर नहीं पता क्या ?
जंतर मंतर जादू मंतर ......... शूऊऊऊऊ ............. भरष्टाचार गायब !!
पहले भी तो बेठे थे उनको देखा देख एक बाबा भी अपने भक्तो को क्रांतिकारी बताकर रामलीला करने बैठ गए थे, एक ही मुददा था पर अढाई चावल की खिचड़ी दोनों अलग अलग पका रहे थे दोनों के सामने भ्रष्टाचारी सरकार थी , जिसने _____
- अन्ना और सिविल सोसायटी की हालत आटे के चिराग सामान कर दी, जिसे घर रखूं तो चूहा खाए बाहर रखूं तो कव्वा ले जाये !
- बाबा बेचारो का तो वही काम हुआ , आज मेरी मगनी कल मेरा ब्याह टूट गयी टंगड़ी रह गया ब्याह, एक दिन का शो एक दिन में खत्म, सारी राजनितिक महत्वकांक्षाएं धरी की धरी रह गयी . कोई राजनितिक विकल्प न मिला जनता को !
सरकार के सामने दोनों अंडे रह गए जो बच्चे को ची ची करना सिखाना चाह रहे थे ..........!!
याद है , जब अन्ना जंतर मंतर पर बेठे थे तो वो बिलकुल गंगा स्नान, चार धाम और मक्का हज यात्रा जेसा पवित्र बना हुआ था ! लगता था जंतर मंतर चले जाओ और सारे पाप धो आओ, सारे पाप उन् दिनों पुण्य में बदल रहे थे ! अरे हाँ ,पुण्य से याद आया जब तक बीवरेज का पानी नही था तो पानी पिलाना भी पुण्य का काम था आजकल तो व्यापार बन गया है , खैर ऐसे पुण्य तो आपने कई किये होंगे पर जंतर मंतर आप गए थे या नहीं ?
अरे सारे धरने प्रदर्शन, देश प्रेमी राजनितिक रेलियां वही होती हैं भूख हडतालो का तो धाम है जी , कुल मिलकर भारत का लोकतंत्र वही बसता है आप गए थे या नहीं ? बुलाया तो होगा आपको भी ? MSG, MAIL, FACEBOOK, TWITTER, के जरिये नहीं बुलाया क्या ? अरे सारी क्रांति आजकल यही तो होती है नारेबाजी देशभक्ति और आस्था का तो धाम है फेसबुक, और सबसे बड़े देशभक्त है ये - फेस्बुकिया देशभक्त ! खैर , आप जंतर मंतर गए थे या नहीं ?
अरे वहाँ पब्लिक स्कूलों के गिटर पिटर अंग्रेजी बोलने वाले बच्चे थे, विश्वविद्यालय के छात्र थे , जामिया वाले भी थे ,डी०यु० वाले भी तफरीह करने नहीं गए थे, आई पी एल के दीवाने भी वही थे. वहाँ बहुराष्ट्रीय कंपनियों के चहेते मध्यम वर्ग के वे लोग भी थे जो अपने बच्चों को आंदोलन, क्रान्ति, नेतिकता और देशभक्ति का पाठ पढाने आये थे, यहाँ हालत ऐसे थे की "आँख एक नहीं और कजरोटा दस दस" !! खैर , आप जंतर मंतर गए थे या नहीं?
पता है -- वहाँ पर सब थे अगर नहीं थे तो, किसान नहीं थे, मजदुर नहीं थे, दिहाड़ीदार नहीं थे, ठेला रिक्शा चलने वाले नहीं थे दलितो और पिछडो गरीबो का वहाँ कोई स्थान नहीं था, भला क्रान्ति से इनका क्या मतलब , अब भले ही देशवासियों की हालत "आँख के आगे नाक सूझे क्या ख़ाक " जैसी ही थी. अरे जब वहा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मेनेजर थे तो भला किसानो का वहा क्या काम ? खेर जाने दीजिए आप जंतर मंतर गए थे या नहीं ?
सोचने की बात है अगर किसान आंदोलन करेंगे जंतर मंतर आयेंगे तो दिल्ली का ट्रैफिक जाम न होगा? मीडिया दिन भर उनको न कोसेगी क्या ? कि किसानो ने रास्ता जाम कर दिया पूरी दिल्ली परेशान है, अब भले ही किसान मरते रहे आत्महत्या करे , भाई ये उनका रोज का काम है कोई सरकार या मीडिया या कोई अन्ना क्यों सुने उनकी, भला उनके साथ क्या बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मनेजर होते है क्या ? और जिसके साथ कंपनिया नहीं उसके साथ मीडिया नहीं, ये विज्ञापन का खेल है भैया? अन्ना की तरह अपने साथ मेंनेजर लाकर दिखाए तो सही किसान, तभी तो क्रान्ति मानी जायेगी, लेकिन पता नहीं आप जंतर मंतर गए थे या नहीं ?
खेर आपके लिए एक खुशखबरी है. १६ अगस्त से अन्ना हजारे फिर अनशन पर बैठ रहे हैं,, फिर पवित्र माहोल होगा ? राजनीति और नेताओं को गाली दी जायेगी , गाली सरकारी नेताओं को होगी ब्लॉग पर सफाई आडवानी जी देंगे, ऐसा पवित्र माहौल होगा की सारे पाप धुल जायेंगे. अबकी बार तो आप जायेंगे न ?
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अब हम काहें कुछ बोले, आजकल क्रान्ति गिटार पिटर अंगरेजी वाचको, बहुराष्ट्रीय कंपनी के मनेजरो, और भरपूर मिडिया कवरेज से ही तो आवत है , औरो की का जरुरत ? ऊ तो सिरफ बोझ ही बने हुए हैं जी , एक बात कहूँ अन्ना जी ,,,,,,,, कुछ भी करना पर बाबा जइसन न होना देना की आगे जाऊं तो घुटना टूटे पीछे हटूं तो आँख फूटे, अन्ना पक्का जंतर मंतर को तहरीर चौक बना देंगे भले ही वास्तविक क्रांति हो या न मीडिया तो हैं न , मेनेजर हैं न, बहुराष्ट्रीय कंपनियां साथ हैं तो ------------- !!
मीतू !! ........... Copyright © .....17:7:2011 ... 12:30 am..